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प्रथमानुयोग के अध्ययन की उपयोगिता का दिग्दर्शन
प्रथमानुयोग के ग्रन्थ पढ़ने से, चरित्र पढ़ने से एक उत्साह जागता है। हम आप लोग धर्मपालन के प्रसंग में उत्साह क्यों नहीं कर रहे कि हम चारों प्रकार के अनुयोगों का उपयोग नहीं करते। जब कोई चरित्र पढ़ते, मान लो श्रीराम का चरित्र पढ़ते हैं और उनको निरखते हैं, अन्त में सब कोई कैसे-कैसे अलग हुए, कैसे निर्वाण पाया, तो वहाँ अपनी बुद्धि ठिकाने आती है कि, अरे! हम उद्दण्डता न करें, अन्याय न करें, अपनी आत्मा को सावधान रूप रखें। ऐसी एक शिक्षा मिलती है। अरे! इस जीवन में न मिला लाखों का धन, तो इससे इस जीव का बिगाड़ क्या? थोड़े ही में गुजारा कर लेना। जो गृहस्थ धर्म का पालन करता है, वह बड़ी शान्ति समृद्धि में बना हुआ रहता है।
करणानुयोग के अध्ययन की उपयोगिता का दिग्दर्शन
करणानुयोग का जब अध्ययन करते हैं, तो करणानुयोगी की बहुत बड़ी विशेषता है। प्रभाव डालने के लिए यानी दुनियाँ का कितना बड़ा क्षेत्र है, लोक कितना बड़ा है, यहाँ हम सर्वत्र पैदा हुए यह कितना-सा प्रेम क्षेत्र है, यह किसने सिखाया? करणानुयोग ने। काल अनादि-अनन्त है और कैसे-कैसे काल की रचनायें बनती हैं, इतना काल मोह व राग में गँवाया, यह किसने सिखाया? करणानुयोग ने। जीव की दशायें कैसी-कैसी विचित्र होती हैं, एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक नरकादिक गतियों में कैसे-कैसे जीव होते हैं, यह बात किसने सिखायी? करणानुयोग ने। अब जरा उनका प्रभाव देखिये। जब ज्ञान आता है कि यह सारा लोक क्षेत्र बहुत बड़ा है। जैसे अभी आज के विज्ञान से भी समझिये तो कहाँ अमेरिका, कहाँ रूस, कहाँ क्या, और कितना बड़ा हिन्दुस्तान और आगम से समझें तो 343 घनराजू प्रमाण लोक में आज की यह परिचित दुनियाँ
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