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प्रवचन भक्ति भावना
अरहंत भाषित ग्रन्थ अनुपम, गणधर द्वारा गुंफित हैं। चारों अनुयोगों से पूरित, संशय रहित वह वंदित हैं।।
भावों से पढ़ता आचरता, भक्ति पूजन है करता। जिन आगम प्रवचन भक्ति से, सद्बुद्धि बहुश्रुत पाता।।
अरहन्त भगवान् द्वारा कहा गया अनुपम ग्रन्थ गणधरों के द्वारा गुंफित किया गया है। वह चार अनुयोगों से परिपूरित है। वह संशयरहित व वंदित है। जो जीव इस ग्रंथ को भक्तिपूर्वक पढ़ता है, आचरण में उतारता है और पूजन करता है, वह जिन आगम प्रवचनभक्ति के बल पर सदबुद्धि को प्राप्त करता है।
प्रवचन का अर्थ जिनेन्द्र भगवान् द्वारा प्रणीत आगम है। संसार से उद्धार कराने वाले रत्नत्रय के स्वरूप व रत्नत्रय प्राप्त होने के उपाय का वर्णन परमागम में ही है। गृहस्थपने में श्रावकधर्म की चर्या का तथा श्रावकों के व्रत-संयमादि व्यवहार-परमार्थरूप प्रवृत्ति का वर्णन प्रवचन से ही जानते हैं। गृह के त्यागी मुनिराजों के महाव्रत अट्ठाइस मूलगुण, स्वाध्याय, ध्यान, आहार-विहार, सामायिक आदि चारित्र का वर्णन प्रवचन में है। छ: द्रव्यों, पाँच अस्तिकायों, सात तत्त्वों, नौ पदार्थों का वर्णन तथा कर्मों की प्रकृति के नाश का वर्णन, तीनलोक की रचना का वर्णन सभी आगम में ही है।
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