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रूप वचन निकलें, यों वचनों का सदुपयोग करें।
तन, मन, धन, वचन ज्ञान के लिए न्यौछावर हो जायें, ऐसी जिसके भावना जगती है और यत्न होता है, वह इस अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग की प्राप्ति कर लेता है। ज्ञान की चर्चा में, पठन-पाठन में, उपदेश में, ज्ञानमय वचनों के प्रोग्राम में अपना तन, मन, धन, वचन का व्यय करें तो यह भी ज्ञानोपयोग की परम्परया सेवा है ।
इस अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग की महिमा का कोटि जिहवा द्वारा भी वर्णन नहीं किया जा सकता है। ज्ञानोपयोग बिना आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता। इस जीव के उद्धार का तथा कष्टों से मुक्त होने का मूल उपाय आगम-ज्ञान ही है। अतः जिनवाणी के अध्ययन, मनन-चिंतन में हमें अपना अधिक-से-अधिक समय देना चाहिये ।
ज्ञानाभ्यास करे मनमाहीं, ताके मोह - महातम नहीं ।
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