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महावत को गिरा देता है, कामी का मन सम्यग्धर्म के मार्ग में प्रवर्तानेवाले ज्ञान को दूर कर देता है। हाथी तो अंकुश को नहीं मानता है, मनरूपी हाथी गुरुओं के शिक्षाकारी वचनों को नहीं मानता है। हाथी तो फल व छाया देनेवाले बड़े वृक्षों को उखाड़ फेंकता है, काम से उद्दीप्त मन स्वर्ग-मोक्षरूप फल को देनेवाले तथा यशरूपी सुगन्ध को फैलानेवाले, समस्त विषयों की आतप को हरनेवाले ब्रह्मचर्यरूपी वृक्ष को उखाड़ फेंकता है ।
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इसलिये इस काम से उन्मत्त मनरूप हाथी के लिए वैराग्यरूप खम्भे से बांधो यदि यह खुला रहा, तो महान अनर्थ करेगा। ये काम अनंग है, इसके पास अंग नहीं है । यह तो मनसिज है, मन में ही इसका जन्म होता है। मन का मथन करनेवाला है, इसलिये इसे मनमथ कहते हैं । संवर का अरि अर्थात् वैरी है, इसीलिये इसे संवरारि कहते हैं । काम से खोटा दर्प अर्थात् गर्व उत्पन्न होता है, इसलिये इसे कंदर्प कहते हैं । इसके द्वारा अनेक मनुष्य-तिर्यंच परस्पर लड़कर मर जाते हैं, इसलिये इसे मार कहते हैं। इसी कारण मनुष्यों में अन्य इंद्रियों के अंग तो प्रगट हैं, काम के अंग ढके हुए हैं। उत्तम पुरुष तो काम के अंग का नाम का भी उच्चारण नहीं करते हैं। इसके समान दूसरा पाप नहीं है। धर्म से भ्रष्ट करनेवाला काम ही है। इस काम ने ऋषि, मुनि, देवता, हरि, हर, ब्रह्मा, आदि को भ्रष्ट करके अपने आधीन किया है। इसलिये सारे जगत को जीतनेवाला एक काम को ही कहा जाता है। इसको जीतनेवाला मोह को सहज ही जीत लेता है। इसलिये काम का त्याग करने के लिये मनुष्यनी, देवांगना, तिर्यंचनी का संसर्ग-संगति कामविकार को उत्पन्न करनेवाली जानकर दूर से ही त्याग करो ।
शीलव्रत का पालन करने के लिए मन, वचन, काय से स्त्रियों में राग का त्याग करना, स्वयं कुशील के मार्ग पर नहीं चलना, अन्य दूसरे को
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