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विनय से सहित मनुष्य सभी को अपनी ओर मोहित कर लेता है। विनय से ही स्व व पर के स्वरूप का प्रतिभास होता है। जो विनयवान् होता है जिसकी कषायें समाप्त हो गई उसी व्यक्ति को बोलते हैं सहजानंद सत्यस्वरूपी।
‘सहजानंद किसी वस्तु का नाम नहीं है। जो योगों की वक्रता/कठिनता को समाप्त कर देगा, वह सहजानंद में जाकर डूब जायेगा। जो आनंद में डूब जाता है, वह अपने लिए संसार की सारी विपरीतताओं से बचाता है। सबसे ज्यादा यदि दुनियाँ में झगड़े हो रहे हैं तो जिह्वा के कारण से । यह जिह्वा कुछ बोलकर अन्दर चली जाती है, इधर तलवारें खिंच जाती हैं। हजारों साल पूर्व जिह्वा ने कितना बड़ा अत्याचार किया था? इस जिह्वा ने दो शब्द बोले थे, वे भी कौतूहलवश। लेकिन ये दो शब्द बोलने का परिणाम यह निकला कि यह नीति चरितार्थ हो गई कि 'गोली चूक जाए, लेकिन बोली नहीं चूकती।' गोली का घाव भर जाता है, लेकिन बोली का घाव जन्म-जन्म तक बना रहता है। पत्थर की चोट के घाव सूख जायेंगे, डंडे के घाव सूख जायेंगे, उनका आपरेशन हो जायेगा, लेकिन कभी किसी के प्रति बोल के घाव पड़ जायें, तो उसके हृदय में जन्म-जन्म तक वह घाव नहीं सूखता। रिसता रहता है, हरा बना रहता है। जन्म-जन्म तक हरा बना रहता है। गोली तो एक ही जीव को मारती है, लेकिन बोली न जाने कितने जीवों का संहार कर देती है। एक गोली एक ही जीव को मार सकती है, दो जीवों को मारने की क्षमता नहीं ।लेकिन बोली में इतनी क्षमता है कि सारे वंश का विनाश कर सकती है।
द्रोपदी के मुख से मजाक में दो शब्द निकल गये कि अन्धे के पुत्र अन्धे ही होते हैं। इतना ही तो कहा था। बेचारी द्रोपदी दुर्योधन की भाभी थी। उसे देवर से मजाक करने का अधिकार समाज ने दिया है। एक वचन बोल दिया था कि अंधे के पुत्र अन्धे होते हैं। कब बोला था यह
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