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प्रसन्न हुआ। सब रानियों के लिए उनकी पसन्द की वस्तुएँ राजा ने ले लीं और छोटी रानी के लिए कुछ विशेष ले लिया। वापस जाकर सभी रानियों का सामान नौकरों से भिजवा दिया और छोटी रानी के पास राजा स्वयं गये और छोटी रानी से पूछा कि तुमने क्या लिखा था ? उसने कहा, 'हे स्वामिन्! आपकी चाह थी। आप हैं, तो सबकुछ है और आप नहीं, तो इन वस्तुओं की कोई कीमत नहीं। उसी प्रकार अगर दर्शनविशुद्धि भावना नहीं, तो शेष पंद्रह भावनाओं की कोई कीमत नहीं । इसलिए हे भव्य प्राणियो! सबसे पहले दर्शन शुद्ध करो, तभी कल्याण होगा अन्यथा बिना सम्यग्दर्शन के सारी क्रियाएँ यथेष्ट फलदायी नहीं होती।
दरश विशुद्धि धरै जो कोई, ताको आवागमन न होई।।
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