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आठ शंकादि दोष
निःशंकित आदि आठ अंगों के विपरीत निम्न आठ दोष होते हैंशंका -जिनधर्म में शंका का होना। कांक्षा -धर्म का सेवन करके लौकिक सुखों की बांछा
करना। 3. विचिकत्सा -अशुभ कर्म के उदय से प्राप्त हुई अशुभ सामग्री में
ग्लानि करना। मुनिराजों के मलिन शरीर को देखकर
ग्लानि करना। 4. मूढदृष्टि - खोटे शास्त्रों से, व्यन्तर आदि देवकृत विक्रिया से,
मणि-मंत्र, औषधि आदि के प्रभाव से अनेक वस्तुओं का विपरीत स्वभाव देखकर सच्चे धर्म से चलायमान
होना। 5. अनुपगूहन - अन्य जीवों के अज्ञान से, अशक्तता से लगे हुये
शेष सबको बताना। 6. अस्थितिकरण- धर्म से विचलित होते हुये जीवों को धर्म में न
लगाना और धर्म से विचलित करना। 7. अवात्सल्य - अपने साधर्मी भाइयों से द्वेष रखना, प्रीति न
रखना। 8. अप्रभावना - धार्मिक कार्यों की प्रभावना न करना, प्रमाद करना।
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