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लोगों को ठगते हैं। पीरपूजा, कब्रपूजा, ताजियों के नीचे से बच्चों को निकालना, गाजीमियाँ की मनौती आदि पाखण्ड इसी बहम के आधार पर चल रहे हैं।
अशिक्षित जनता में अज्ञानता का प्रवाह यहाँ तक बढ़ गया है कि प्राचीन टूटे ध्वस्त मंदिरों का कोई भी टुकड़ा किसी को मिल गया तो उसने उस टुकड़े को किसी स्थान पर रखकर देवी-देवता मान लिया और उसको तेल–सिन्दूर चढ़ा कर पूजना आरम्भ कर दिया। उस पत्थर के टुकड़े पर चाहे किसी देवी-देवता की मूर्ति उकेरी हुई हो अथवा न हो, किन्तु उसे देवी-देवता मान लिया। ऐसे देवी-देवता हजारों स्थानों पर पुज रहे हैं। इतना अवश्य है कि उन पाषाणखण्डों के कुछ-न-कुछ नाम उन पूजनेवालों ने अवश्य गढ़ लिये हैं, किन्तु उस नाम का कोई देव था भी? उसका कुछ इतिहास या शास्त्रीय मान्यता अथवा वास्तविकता भी कुछ है या नहीं? इस विषय पर अन्ध श्रद्धालु जनता ने कुछ भी विचार नहीं किया। __इस अज्ञानता के प्रवाह में अनेक स्थानों पर प्राचीन जैन तीर्थंकरों की वीतराग मूर्तियों को भैंरो, जखैयाँ आदि नाम दे दिया गया है और उनके सामने विभिन्न पशुओं को निर्दयता के साथ मारकर बलि देने की प्रथा चालू हो गई। उस भोली जनता में अभी तक इतना विवेक जाग्रत नहीं हो पाया कि जिन तीर्थंकरों ने संसार को "अहिंसा धर्म" का संदेश दिया था, प्राणीमात्र पर दया करना तथा अहिंसा पालन करने का व्यापक प्रचार किया था, धर्म के नाम पर भूल से या स्वार्थवश किये जाने वाले पशुवध या पशुबलि को त्याज्य घोषित किया था, उन अहिंसा प्रचारक तीर्थंकरों के सम्मुख हिंसाकार्य करके उल्टा कार्य किया जा रहा है। महान् पापकार्य एक पवित्र वीतरागीदेव की प्रतिमा के समक्ष किया जा रहा है।
इस अन्धश्रद्धा की पराकाष्ठा यहाँ तक देखी जाती है कि लोग अनेक जगह सड़कों पर गड़े हुए मीलों की संख्यासूचक पत्थरों के सामने हाथ
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