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मथ कर उसमें से लक्ष्मी, कौतुभ मणी, पारिजात (फूल) और सुरा (मदिरा) धन्वंतरि वैद्य, तथा चन्द्रमा, कामधेनु, गौ (गाय), ऐरावत हाथी, रंभा अर्थात् देवांगना, सात मुख का घोड़ा, अमृत, पंचानन शंख, विष और कमल, ये चौदह रत्न निकाले। तब यह विचार नहीं करता कि वासुकि राजा को धरती के नीचे से निकाल लाया, तो धरती फिर किसके आधार से रही? तथा सुमेरू को उखाड़ दिया, तो उसे शाश्वत कैसे कहें? और जब तक चन्द्रमा आदि चौदह रत्न समुद्र में थे, तो बिना आकाश के चन्द्रमा किस भांति गमन करता था? चाँदनी कौन करता था ? तथा एक-दो आदि पन्द्रह तिथियाँ तथा उजाला व अँधियारा पक्ष, महीना और वर्ष इनकी प्रवृत्ति किससे थी? लक्ष्मी के बिना धनवान पुरुष कैसे थे? सो यह प्रत्यक्ष विरुद्ध है, सो यह सत्य कैसे संभावित हो सकता है? तथा कोई कहते हैंकोई राक्षस धरती को पाताल में ले गया, पश्चात् वाराह (सुअर) का रूप धारण कर पृथ्वी का उद्धार किया। तब ऐसा विचार नहीं करता कि, यह पृथ्वी शाश्वत थी, तो राक्षस कैसे हर ले गया? तथा कोई यह कहते हैं-सूर्य कश्यप राजा का पुत्र है, बुध चन्द्रमा का पुत्र है, तथा शनिश्चर सूर्य का पुत्र है, तथा हनुमानजी अंजली के कान के मैल का पुत्र है। सो इस तरह विचार नहीं करता कि इतना गर्म सूर्य कश्यप राजा के गर्भ में कैसे रहा होगा? तथा सूर्य, चन्द्रमा के शनिश्चर व बुध पुत्र कैसे होंगे? कुँआरी स्त्री के कान के मैल से पुत्र कैसे? प्रत्यक्ष विरुद्ध है, तो यह बातें सत्य कैसे संभव हो सकती हैं? इत्यादि भ्रमबद्धि से जगत भ्रम रहा है, उसका वर्णन कहाँ तक करें? सो यह बात न्यायसंगत ही है कि संसारी जीवों के ही भ्रमबुद्धि न हो तो किसको हो? कोई पंडित या ज्ञानी पुरुषों के होती नहीं है। तथा इसी प्रकार पंडित/ज्ञानीपुरुषों में भ्रमबुद्धि हो तो, संसारी जीवों में और पंडित/ज्ञानी में विशेषता क्या रही? धर्म तो लोकोत्तर है। भाव यह है कि लोकरीति से लोक की प्रवृत्ति और धर्म की
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