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पूर्वक हाथ जोड़कर उपदेश देने का निवेदन किया। तब मुनि महाराज ने उस मंत्री को निकटभव्य जान कर धर्म का स्वरूप समझाया। उसी समय अत्यन्त वैराग्यपूर्ण उपदेश सुनकर मंत्री दीक्षा लेकर मुनि हो गये और वन में जाकर आत्मसाधना करने लगे। __उस सोमदत्त मंत्री की पत्नी ने यज्ञदत्त नामक पुत्र को जन्म दिया। पति के मुनि हो जाने का समाचार सुनकर वह अपने भाई के पास चली गई। एक बार वह अपने भाइयों के साथ नाभिगिरि पर्वत पर गई थी। वहाँ उसने अतापन योग में स्थित सोमदत्त मुनिराज को देखा तो वह अत्यधिक क्रोध से भर गई और बोली- "अगर साधु ही होना था, तो मुझसे शादी क्यों की ? मेरा जीवन क्यों बिगाड़ा ? अब इस पुत्र का पालन-पोषण कौन करेगा? ऐसा कहकर उस बालक को वहीं छोड़कर वह चली गई। इस बालक का नाम वज्रकुमार था, क्योंकि उसके हाथ पर वज्र का चिह्न था।
बस, उसी समय दिवाकर नाम के एक विद्याधर राजा तीर्थयात्रा करने निकले थे। जब वे मुनि महाराज की वन्दना करके जाने लगे, तो उन्होंने वहाँ एक अत्यन्त तेजस्वी बालक को पड़ा हुआ देखा। विद्याधर राजा की रानी ने उस बालक को एकदम उठा लिया और बड़े प्यार से उसे वे अपने साथ ले गये। उस वज्रकुमार बालक का पुत्र-जैसा पालन-पोषण विद्याट र राजा के यहाँ होने लगा। भाग्यवान् जीवों को कोई-न-कोई निमित्त अवश्य ही मिल जाता है। __ वज्रकुमार के युवा होने पर वनवेगा नामक अत्यन्त सुन्दर विद्याधर कन्या के साथ उसकी शादी हुई। अपने बल पर उसने अनेक राजाओं को जीत लिया।
कुछ समय पश्चात् विद्याधर दिवाकर राजा की पत्नि के स्वयं पुत्र हुआ। अपने इस पुत्र को राज्य मिले- ऐसी इच्छा से उस स्त्री को
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