________________
तथा अन्य उचित क्रियायें करना वात्सल्य है।
एक बार दुर्योधन को गन्धर्वों ने बन्दी बना लिया। धृतराष्ट्र ने धर्मराज युधिष्ठिर से निवेदन किया । धर्मराज ने भीम से कहा- “भइया! जाओ दुर्योधन को छुड़ा लाओ । दुर्योधन का नाम सुनकर भीमराज क्रोध से भर उठे, बोले– “उस पापी की मुक्ति की बात कर रहे हो, जिसके कारण हमें वनवास की यातनायें सहनी पड़ीं ? उस अन्यायी, अत्याचारों को छुड़ाने की बात करते हो, जिसने भरी सभा में द्रोपदी को निर्वसन करने का दुस्साहस किया था ? धर्मराज ! अगर आप किसी और की मुक्ति की बात करते तो अनुचित न होता, किन्तु दुर्योधन को मुक्त कराने तो मैं नहीं जाऊँगा।” धर्मराज के हृदय का करुणाभाव आँखों में बहते देखकर, अर्जुन ने उनके वात्सल्यभाव को समझा और गाण्डीव धनुष द्वारा गन्धर्वों से युद्ध किया तथा दुर्योधन को छुड़ा लाये ।
यह है सम्यग्दृष्टि का वात्सल्य अंग । तब धर्मराज ने समझाया- “हम परस्पर सौ कौरव और पाँच पाण्डव हैं । लड़-भिड़ सकते हैं, किन्तु बाहर वालों के लिये हम सदा एक - सौ-पाँच भाई ही हैं । धर्मराज के वात्सल्य को देखकर/सुनकर भीम लज्जित होकर नतमस्तक हो गये। साधर्मी भाइयों में वात्सल्य का होना सम्यग्दृष्टि का वात्सल्य अंग है।
सम्यग्दर्शन के आठ अंगों की तुलना में वात्सल्य को सम्यक्त्व का हृदय बताया गया है और हृदय शरीर का मुख्य अंग है । हृदय रुक जाता है तब जीवनलीला समाप्त हो जाती है; उसी प्रकार जब जीव वात्सल्य से रहित हो जाता है, तब वह सम्यक्त्वविहीन हो जाता है। 'कुरलकाव्य' में कहा है
"अस्थिहीनं यथा कीटं, सूर्योदहति तेजसा । यथा दहति धर्मश्च प्रेमशून्यनुकीटकम् ।"
593 2