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पास जाये किन्तु वे लाला चन्दा देते ही न थे। एक बार कुछ लोगों ने निश्चय किया कि वे चन्दा लेकर ही रहेंगे। आखिर वे एक दिन उनके पास पहुँच गये और चन्दा देने की प्रार्थना की, किन्तु उन सेठ पर अनुनय- विनय का कोई प्रभाव नहीं हुआ। वे बोले- "आप जानते ही हैं, मैं कभी किसी को चन्दा देता ही नहीं। आप लोग व्यर्थ ही आये हैं।" चन्दा लेने वाले बोले- "आप नियम के कितने पक्के हैं, यह सराहनीय है। कम से कम आप किसी नियम का निष्ठापूर्वक पालन तो करते हैं। आप बस इस दस हजार की रसीद पर अपने मात्र हस्ताक्षर कर दीजिये, दीजिये कुछ नहीं, हमारा कार्य सम्पन्न हो जायेगा। सेठ के हस्ताक्षर कर देने पर चन्दा लेनेवाले बड़ी प्रसन्नतापूर्वक बाहर निकले। लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ, ये लोग कैसे चन्दा ले आये ऐसे आदमी से ? बस, फिर क्या था आशातीत चन्दा हुआ उस अवसर पर।
कुछ दिन बाद चन्दा वसूल करने वाले लोग फिर एक बार सेठ जी के पास आये और दस हजार रुपये ग्रहण करने का आग्रह किया। सेठ पछताने लगा, ओह! मेरा सारा जीवन व्यर्थ ही रहा। जब बिना दिये, केवल हस्ताक्षर मात्र से इतना नाम अर्जन हो सकता है, तो यदि मैं दान देता तो मेरा कितना नाम होता ? सेठ जी उन चन्दा लेने वालों से बोले'आप लोगों को जितना चन्दा मिला है, उससे अधिक मेरा लिख लीजिये।' इस गुणावलोकन की दृष्टि ने उस सेठ को भी गुणी बना दिया। यदि केवल उसके दोषों को ही उभारा जाता, तो संभवतः वह सेठ और भी दूषित हो जाता।
अतः गुणी लोग दूसरों में केवल गुण ही देखते हैं। दोषों के बीच में भी वे गुण ही ग्रहण करते हैं और दोषों के प्रति पूर्ण निरीह रहते हैं। दूसरों के दोषों को प्रचारित करने से कोई लाभ नहीं होता। पर आज व्यक्ति को जब किसी की कोई कमी मालूम पड़ जाती है, तब वह जब तक उसे फैला
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