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परिणाम पलटने की सूचना देते हैं।
विद्या सिद्ध होने पर अंजन ने विचार किया-"अहो! जिस जैनधर्म के एक छोटे से मन्त्र के प्रभाव से मेरे जैसे चोर को यह विद्या सिद्ध हुई तो वह जैन गर्म कितना महान होगा? उसका स्वरूप कितना पवित्र होगा ? चलूँ, जिस सेठ के प्रताप से मुझे यह विद्या मिली, उन्हीं सेठ के पास जाकर जैनधर्म के स्वरूप को समझू, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो सके। ऐसा विचार कर विद्या के बल से वह मेरुपर्वत पर पहुँचा। वहाँ पर रत्नमयी अरहन्त भगवन्तों की वीतराग प्रतिमाओं को देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ। उस समय जिनदत्त सेठ वहाँ मुनिराज का उपदेश सुन रहे थे। अंजन ने उनका बहुत उपकार माना और मुनिराज के उपदेश को सुनकर आत्मा के स्वरूप को समझा । आत्मा की निःशंक श्रद्धा करके उसने सम्यग्दर्शन प्राप्त किया और पूर्व के पापों का पश्चाताप करके मुनिराज के पास दीक्षा ले ली, वे मुनि बनकर आत्मध्यान करते हुए अपनी साधना करने लगे। उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई और बाद में कैलाशगिरि से मोक्ष पाकर सिद्ध हुये, अंजन से निरंजन बन गये। ___ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने लिखा है- निःशंकित अंग के दो अर्थ होते हैं, एक संदेह का न होना और दूसरा भय का न होना। ये दोनों अर्थ साथ-साथ भी चल सकते हैं। अर्थात् निःशंकित अंगधारी अभय और संदेह रहित होता है।
आध्यात्मिक क्षेत्र में भय का कोई प्रश्न ही नहीं। केवल अब तक चल रहे संसारमार्ग को छोड़कर एक छलांग मात्र मारनी है और बस, फिर बेड़ा पार है। मंजिल पर पहुँचने में देरी न होगी, किन्तु यदि पैर लड़खड़ा गये, तो मंजिल पर पहुँच नहीं सकते। मृग सिंह से भी तेज दौड़ता है, किन्तु वह पकड़ा क्यों जाता है? क्योंकि शेर की गर्जना सुनते ही उसके पैर आगे बढ़ नहीं पाते, वह एक जगह ठहर जाता है। इसीलिये शेर उसे पकड़ लेता है।
एक बार यह विश्वास गले उतर जाये कि "मैं अजर-अमर हूँ, मैं शाश्वत हूँ, तो काम बन जाये। जैसे किसी गम्भीर रोगी को देखकर डाक्टर कहे-"बस, यह दवा गले से नीचे उतर जाये तो काम बन जाये" यही बात आध्यात्मिक क्षेत्र
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