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जैसे नदी में डूबते हुए चार-छ: आदमी हैं, जो तैरना नहीं जानते हैं और इकट्ठे एक जगह आ गए हैं। गहरे पानी में उनमें एक को दूसरे से क्या आशा है ? क्या वे एक दूसरे का हाथ पकड़कर बच सकेंगे? वह तो सब डूबने के लिए हैं। इसी तरह ये जगत के मोही प्राणी स्वयं संसार-सागर में डूब रहे हैं, उनसे सुख की क्या आशा करना ?
अभी आत्मा को बड़ा बनाने का समय है। यह महान बनेगा, तो इसकी सद्बुद्धि चलेगी और इसको ऐसे ही रहना होगा, तो मोह में बाह्य पदार्थों में ही जकड़ा रहेगा। यह बड़े सौभाग्य की बात है जो इस आत्मा को अपने शुद्ध ज्ञानस्वरूप में देखें। इससे बढ़कर ऊँचा भवितव्य और कोई को नहीं कहा जा सकता है। स्वप्न में बड़े हो गये, तो क्या वह बड़प्पन आगे रहेगा? बल्कि स्वप्न में देखा हुआ बड़प्पन थोड़े समय बाद में दुःख करेगा। जैसे एक कथानक में कहते हैं कि कोई घसियारा था। वह सिर पर घास का गट्ठा धरे जा रहा था। साथ में 4-5 घसियारे और थे। और एक पेड़ के नीचे बोझ उतार कर आराम से लेट गये। उनमें से एक घसियारे को नींद आ गई। नींद में स्वप्न आ गया। स्वप्न में देखता है कि लोगों ने उसे राजा बना दिया है। एक अच्छा महल है। बड़े हाल में अनेक दरवाजे लग रहे हैं। बड़े-बड़े मुकुटधारी राजा आ रहे हैं। लोगों के द्वारा प्रशंसा हो रही है। गाने-ताने हो रहे हैं। सब झुक रहे हैं। इतने में एक घसियारा जागता है और कहता है कि चलो, समय हो गया, बड़ी देर हो गई है। जब वह जाग गया, तो बोला-'हाय, हाय! मेरा सबकुछ कहाँ गया?' रोने-पीटने लगा।
इसी तरह मोह की नींद में जो सोये हुए हैं, उनको जो स्वप्न में बड़प्पन दिखाई दे रहा है, कि मैं ऐसा हूँ, ऐसा बुद्धिमान हूँ, मैं तो सरकार की पहुंच वाला हूँ, आदि जो स्वप्न देख रहे हैं, वह सच्चे लग रहे हैं। घसियारे को स्वप्न-सा नहीं लग रहा था, अब तक स्वप्न में था। पर जब वह जाग गया, तो उसे झूठ लगा। मोह छूट जाने पर यह भी झूठा लगेगा। मोह की नींद खुल जाने पर यह जगत् का बड़प्पन अच्छा नहीं लगेगा।
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