________________
तुम्हारा नाम मूरखचंद है। सो भैया! उपादान हम लोगों का अशुद्ध है तो मोही ही हैं। जिनका उपादान जिस-जिस रूप है, उनका नाम वैसा पीछे पड़ा । करतूत है, तब नाम पीछे है । यह नहीं कि नाम पहले रखा है, कर्तव्य पीछे । करतूत पहले, नाम बाद में। जो अपने ज्ञान के स्वरूप को जान जाये, उसका नाम है ज्ञानी और जो अपने ही ज्ञान को स्वयं न जाने और दुनियाँ के सारे पदार्थों को जानता है, उसको कहते हैं अज्ञानी । यह मोक्षमार्ग में ज्ञान और अज्ञान की पद्धति है । कोई कितने ही ठाट-बाट बना ले, कितनी ही सम्पदा जोड़ ले, परन्तु शान्ति तब तक नहीं मिलेगी, जब तक अपने सहज ज्ञानस्वरूप ही मैं हूँ, इतना स्वयं में ही यह न मान जाय । दूसरों का आश्रय करके जो विकल्प करने वाली वस्तु है, उससे अहित ही होता है । अन्य की ओर दृष्टि करने से विकल्प होते हैं, विकल्प से मलिनता बढ़ती है ।
एक कोई ब्राह्मण का लड़का था। पढ़-लिख गया। उसने कहा कि हम शादी करेंगे तो अन्धी लड़की के साथ करेंगे, हमारी अन्धी से शादी हो । शादी हो गयी। उस स्त्री ने पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया? कुछ दिन बाद में दो-तीन लड़के हो गये। बाद में वह अन्धी जिद करने लगी कि मेरी आँख खोल दो, तुम तो मंत्र बहुत जानते हो। उसने आँखें खोल दीं। दो-तीन वर्ष बाद में एक बच्चा और हो गया। एक दिन उस स्त्री ने कहा कि तुम मेरी आँखें पहिले क्यों नहीं खोलते थे? पुरुष बोला- 'अच्छा, आज एक काम करना, रोटी मत बनाना। लड़के आयें और कहें कि रोटी क्यों नहीं बनायी, तो कहना कि तुम्हारा बाप हमें गाली देता है, नाराज होता है, इस कारण हमने रोटी नहीं बनायी । फिर जो वे उत्तर दें, मुझे बताना ।' उसने रोटी नहीं बनायी। बड़ा लड़का आया, बोला- माता जी! आज रोटी क्यों बनाई ? माँ बोली कि तुम्हारे बाप ने हमें गाली दी है, इससे रोटी नहीं नहीं बनाई। लड़का बोला कि आप माता हैं और वे पिता हैं, आप लोगों के बीच में हम क्या कर सकते हैं? किन्तु दुःख नहीं सह सकते, हम भूखे नहीं रह सकते हैं।
दूसरा आया, तीसरा आया, वही बात हुई । चौथा आया और बोलाअम्मा! आज रोटी क्यों नहीं बनाई ? माँ ने उत्तर दिया कि हमें तुम्हारे बाप ने LU 432 S