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हैं, जरा घर जाकर उनसे यह बात पूछ कर आओ कि तुम सब यह धन भोगने में तो मेरे हिस्सेदार होते हो, परन्तु इस लूटपाट से बंधने वाले पाप का फल भोगते समय दुर्गति के दुःख में भी मेरे सहभागी बनोगे क्या?
उस लुटेरे ने घर जाकर अपने कुटुम्बियों से उक्त प्रश्न पूछा। परन्तु पाप या दुःख में हिस्सा बटाने के लिये कोई तैयार नहीं हुआ। तब महात्मा ने समझाया
सुन, भाई! यह जीव स्वयं अकेला ही पुण्य पाप भावों को करता है और अकेला ही उनका फल भोगता है, दूसरा कोई उसमें सहभागी नहीं हो सकता, इसलिये तू पाप छोड़कर अपने भविष्य को सुधार।
यह सुनकर उस लुटेरे को वैराग्य हो गया उसे संसार की स्वार्थ लीला समझ में आ गई। और उसने सन्यास धारण कर लिया। जिन्हें भी सत्य समझ में आ जाता है, उन्हें संसार से वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। वह विषय भोगों के प्रति उदासीन हो जाता है।
__ एक महात्मा जी ने अपने शिष्यो से कहा कि "अब मेरा अन्त निकट है, इसलिये तुम लोगों को जो कुछ पूछना हो पूछ लो।” गाँव में खबर कर दो कि महात्मा जी जा रहे हैं, उनका अन्तिम समय आ गया है। यह बात सुनकर एक व्यक्ति ने महात्मा जी से मिलने की अपनी इच्छा प्रकट की और बोला – तीस वर्षों तक महात्मा जी मेरे गाँव में रहे, पर मैं उनसे एक दिन भी नहीं मिल सका, लेकिन आज जब सुना कि महात्मा जी अपनी अन्तिम साँसें ले रहे हैं, जब दृढ़ निश्चय करके तथा समस्त कार्यों को छोड़कर महात्मा जी के दर्शन करने आया हूँ। यह सुन महात्मा जी का एक शिष्य कहता है कि आपने बहुत देर कर दी। वह व्यक्ति कहता है – मैं अपनी घर-गृहस्थी में फँसा रहा, पर जब मैंने सुना कि महात्मा जी की ज्योति बुझने वाली है, तब मैं दौड़ा आया हूँ। यह सब वार्ता महात्मा जी सुन रहे थे। अब वे कहते हैं - आ जाओ, अभी भी कुछ साँसें शेष हैं, मैं तुम्हारी जिज्ञासा शान्त कर दूंगा। यह सुनकर वह व्यक्ति अपनी भूल पर रोने लगता है। महात्मा जी आश्वासन देते हुये कहते हैं कि जिसे अपनी अज्ञानजनित भूल का पता चल गया, जिसे समझ में आ गया कि मैंने अपना
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