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बोला, वह दस खाये और हम ग्यारह खायेंगे । अज्ञान में, मोह में बहुत-सी ऐसी बातें हो जाती हैं जिनमें कुछ जान नहीं होती ओर पति-पत्नी में जिद की दीवार खड़ी हो जाती है, जिसे गिराना बहुत मुश्किल होता है।
ये जगत के प्राणी व्यर्थ की बातों में ही विवाद खड़ा कर देते हैं। अपने धर्म को छोड़कर कहाँ दृष्टि डाल रहे हो? धर्म अपने आपकी आत्मा में है। अपने आपके स्वरूप में दृष्टि हो, तो धर्म है। धर्म बाह्य दृष्टि से, बाह्य में मोह करने से नहीं मिलेगा। शुद्ध परिणाम से ताल्लुक रखो, तो धर्म होगा। अगर क्रोध आदि कषाय ही करते रहे, तो धर्म नहीं होगा। अरे! मैं यह चेतन पर पदार्थों के पीछे बरबाद हो गया, जिनमें कोई सार नहीं। अभी तक अपनी जो रफ्तार चल रही है, उसमें फर्क करना चाहिये। अपने जीवन को संयमित करके अपने को अपने आप मे झुका लो, तो शान्ति का मार्ग मिलेगा, अन्यथा संसार में रुलना ही बना रहेगा। जब तक हम अपने आप से विमुख रहेंगे, तब तक शान्ति नहीं आयेगी। अपने को शान्त रखने के लिए समर्थ स्वाध्याय है. संयम है. अत्मचिन्तन है। सुखी होने का उपाय केवल आत्मदर्शन ही है, अन्य दूसरा नहीं। जो ज्ञानीजीव हैं, वे बाहय में नहीं पड़ते। उन्हें कोई परेशानी नहीं होती है और जो अज्ञानी होते हैं, वे व्यर्थ की बातों में अड़ जाया करते हैं, छोटी-छोटी बातों में विवाद खड़ा कर देते हैं। जैसे कहते हैं 'सत न कपास कोरी से लटठमलठा।'
दो व्यक्ति चले जा रहे थे। एक अहीर था और एक कोरी। रास्ते में एक बहुत बड़ा खेत था। कोरी बोला कि अगर यह खेत मुझे मिल जाये तो हम इसमें कपास बोयेंगे ओर कपास के कपड़े बनाकर व्यापार करेंगे। अहीर बोला-अगर यह खेत हमें मिल जाये तो मैं इसमें अपनी भैंसें चराऊँगा। कोरी बोला-तू भैंसें कैसे चरायेगा? मैं कपास बोऊँगा । अहीर बोला कि अच्छा, देखो मेरी भैंसें चरती हैं या नहीं? रास्ते में चले जा रहे हैं। हाथ चलाकर कोरी बोला-तो मैंने खेत हल से जुता लिया, बीज बो दिया, कपास पैदा हो गई। अहीर ने दस कंकड़ उठा लिये और एक कंकड़ खेत में फेक दिया कि लो हमारी एक भैंस आ गयी, दूसरा कंकड़ फेक दिया दूसरी भैंस आ गयी। लो, आपस में लट्ठमलट्ठा होने लगा। अरे वहाँ न सूत है, न कपास और न ही अहीर की गाय-भैंसें हैं, पर
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