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सेठ ने रहस्यमयी मुस्कान भरते हुये कहा-अरे, भले आदमी! रात को सोते समय मैं उस डिबिया को तुम्हारे सामान में रखकर आराम की नींद सोता था। इतना सुनते ही ठग बड़ा हैरान हुआ कि कैसी अजीब बात है कि जो डिबिया सारी रात मेरे सामान में रहा करती थी, उसे ढूढ़ने के लिये मैं रात भर सेठ का सामान टटोलता रहता था। प्रत्येक मनुष्य स्वयं को छोड़कर सदा दूसरों को ही टटोलता रहता है पर स्वयं की खोज नहीं करता। आचार्यों का कहना है कि जो स्वयं को जानता है, उसे सब कुछ मिल जाता है और जो दूसरों को जानने में जिन्दगी बिता देता है, उसे कुछ भी नहीं मिल पाता।
यदि चारों गतियों के दुःखों से छूटना चाहते हो तो धर्म का सेवन करो। 'जब वृद्धावस्था होगी, तब धर्म करेंगे'-ऐसा कहते-कहते अनेक व्यक्ति धर्म किये बिना ही मर गये। धर्म करने के लिये वृद्धावस्था की राह क्यों देखना? सभी के जीवन में पहला स्थान धर्म का होना चाहिये।
- चक्रवती भरत के पास एकसाथ तीन शुभ संदेश आये थे। जिनमें पत्र-रत्न और चक्ररत्न की प्राप्ति इन दोनों को गौण करके उन्होंने सबसे पहले भगवान् आदिनाथ को केवलज्ञान प्राप्ति के शुभ संदेश को मुख्य करके उनकी पूजा की थी। इस घटना से पता चलता है कि महापुरुषों के जीवन में धर्म की प्रधानता थी। अतः यदि तुम्हें दुःख से छूटना हो तो वर्तमान में तुम्हारे पास जो मौजूद है, उसका सदुपयोग कर लो। आचार्य यहाँ बता रहे हैं-तेरे उल्टे भाव के अनुसार ही कर्म बंधे हैं, अतएव संसार परिभ्रमण का मूल कारण ये मिथ्यात्वादि उल्टे भाव ही हैं। इन उल्टे भावों को छोड़, तो तेरा भवभ्रमण मिटे । निज आत्मतत्त्व को पहचानकर, श्रद्धानकर सम्यग्दर्शन धारण करो। सम्यग्दर्शन के बिना जीव का परिभ्रमण कभी नहीं मिटता।
आचार्य योगीन्दुदेव ने लिखा है- निज आत्मतत्त्व जिनके मन में प्रकाशमान हो जाता है, वह साधु ही सिद्धि को पाता है। कैसा है वह तत्त्व? जो रागादि-मल रहित है और ज्ञानरूप है, जिसको परम मुनीश्वर सदा अपने चित्त में ध्याते हैं। अपने को इस जड़ शरीर से भिन्न चैतन्यस्वरूप जानना-देखना तथा
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