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किया और उससे कहा कि भारत के संविधान में लिखा है कि प्रत्येक कुएं पर पाट होना चाहिये, दीवार होना चाहिये, ताकि कोई गिर न पड़े। इस कुएँ पर दीवाल नहीं है, इसलिये तुम गिर गये हो। हम तो पता नहीं कितने दिनों से सरकार से माँग कर रहे हैं कि नगर के कुँओं पर दीवाल बनवा दो, लेकिन सरकार सुनती ही कहाँ है? अब सरकार की आँखें खुलेंगी । तुम चिन्ता मत करो, मैं अभी जाकर आंदोलन करूँगा। हजारों लोगों को लेकर जाऊँगा और कुँओं पर दीवार बनवाऊँगा, ताकि कोई गिर न सके ।
डूबते हुए आदमी ने कहा, 'हड़ताल बाद में करना, पहले मुझे तो बचाओ, अन्यथा मैं मर जाऊँगा ।' उस व्यक्ति ने कहा- एक आदमी के मरने - जीने से फर्क नहीं पड़ता। यह तो सबकी जिन्दगी का सवाल है । कल भी यह घटना घट सकती है। तुम अपने-आपको धन्य समझो। तुम शहीद हो । डूबते हुए व्यक्ति ने कहा पहले मुझे निकाल लो। मैं मरने वाला हूँ, डाल टूटने वाली है, बाद में मैं तुम्हारें साथ चलूँगा । उसने कहा तुम कैसी उल्टी - उल्टी बात करते हो? तुम्हीं तो मेरे आन्दोलन के प्रत्यक्ष प्रमाण हो । अगर तुम्हें निकाल लूँगा तो मेरे पास प्रमाण कुछ न बचेगा अतः ऐसे ही लटके रहो। तुम्हारे मरने से कम-से-कम कुँओं का उद्धार तो हो जायेगा । मात्र तुम्हारे जीवन का सवाल नहीं, समस्त मनुष्यों के जीवन का सवाल है । और वह उपदेश देकर लोगों को एकत्र करने चला गया ।
वह आदमी डूबता रहा, चिल्लाता रहा, लेकिन किसी ने भी उसे नहीं बचाया। उस समाज सुधारक ने हजारों लोग एकत्र कर लिए और संविधान का पन्ना खोलकर दिखाता रहा और उस कुँए के आदमी की ओर उसने कोई ध्यान नहीं दिया।
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एक जैन श्रावक वहाँ से गुजरा। उसने भी उसकी आवाज सुनी। कुँए पर जाकर देखते ही जल्दी से अपने झोले से रस्सी निकाली । झोले में वह रस्सी रखे हुए था और अपने कपड़े उतारे और कुँए में कूद पड़ा और उस डूबते हुए व्यक्ति को बाहर निकाल लाया ।
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उस डूबते हुए आदमी ने कहा कि तुम ही एक ऐसे आदमी मिले जिसने
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