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जवान था। उसके भी अपने अरमान थे, बहुत से राज्यों पर आक्रमण करना था। अपनी विजय- पताकायें फहराना थीं। उसने डाक्टर की बात को स्वीकार कर लिया। चूंकि प्रजा का भी राजा से बहुत आग्रह था कि आप हमारे स्वामी हैं, आपके बिना हम जीवित नहीं रह सकते, आपके अभाव में हम कुछ भी न कर सकेंगे। हम भगवान से आपके चिरायु होने की कामना करते हैं। आप आम न खाएँ। राजा को सबका प्रेमपूर्ण आग्रह स्वीकार करना पड़ा। प्रेम ही तो एक ऐसी शक्ति है जो अचिन्त्य कार्य करवा देती है। ___ एक दिवस राजा और मंत्री घूमने निकले । एक उद्यान में जाकर दोनों बैठ गये । उद्यान में आम के वृक्षों की बहुलता थी। वायु बह रही थी। मंत्री को शंका हुई, कहीं राजा का मन इन पीले-पीले मद-मस्त आमों की ओर आकर्षित न हो जाये। इसलिए मंत्री ने राजा से कहा, चलो अन्य कहीं किसी वृक्ष तले आराम करते हैं। ये आम का वृक्ष है। डॉक्टर ने आम के वृक्ष के नीचे बैठने से मना किया है आपको। राजा ने कहा-डॉक्टर तो यही कहते हैं। हम आम खा थोडे रहे हैं। मात्र पेड़ के नीचे बैठे हैं। राजा से ज्यादा कुछ तो कहा नहीं जा सकता मंत्री चुप हो गया।
राजा ने ऊपर की ओर देखा, पीले-पीले गदराये बदन वाले आम हवा संग धीरे-धीरे बात कर लटक रहे हैं। राजा के मन में उनके प्रति आकर्षण बढा और रसना-इन्द्रिय द्रवित हो गयी। आम की खुशबू नासा-इन्द्रिय से टकरायी तो एक आह भरकर उसने कहा, आह! कितनी मधुर गंध है। जब गन्ध इतनी मीठी है, तो पता नहीं आम कितना मीठा होगा। लेकिन भीतर से मन कह रहा था कि आम खाओगे तो मर जाओगे। तब दूसरा मन कहता है कि एक आम खाने से कुछ नहीं होता। राजा वहाँ से उठने को तैयार हुआ कि सामने एक आम आकर गिर पड़ा। यह तो एक निमन्त्रण था। राजा स्वयं को न रोक सका और उसे हाथ में उठा लिया । मंत्री ने तुरन्त हाथ जोड़कर कहा, हुजूर! सचेत, खतरा-डेन्जर, उसे वहीं छोड़ दो। यह मौत का आमंत्रण है, इसे स्वीकार मत करो। आपको आम खाने की मनाही है और आप आम छू रहे हैं। राजा ने कहा कि मैं खा थोड़े रहा हूँ। मैं तो मात्र देख रहा हूँ। देखने मात्र से कुछ नहीं होता। मैं आम खाऊँ,
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