________________
मानस्तम्भ को देखा तो उसका ज्ञानमद स्वयं शान्त हो गया।
समवसरण में प्रवेश करते ही भगवान् महावीर का दर्शन करते ही वह उनका भक्त साधु बन गया। उसी समय उसको मनःपर्यय ज्ञान हो गया। यह महान परिवर्तन होते कुछ देर न लगी। तत्काल भगवान् महावीर का दिव्य उपदेश प्रारंभ हुआ और बीजपद रूप गूढ़ उपदेश को श्री इन्द्रभूति गौतम ने अपने हृदय पर अंकित कर लिया और उपस्थित जनता को सरल वाणी में अंग, पूर्व आदि को विभिन्न-विभिन्न रूप में समझाया। इस तरह वह भगवान् महावीर के प्रथम गणधर बने।
जिस दिन भगवान महावीर का निर्वाण हुआ, उसी दिन गौतम गणधर को केवलज्ञान हुआ और कुछ दिनों बाद उन्होंने संसार कारागार से मुक्ति प्राप्त की।
इस तरह जो इन्द्रभूति गौतम अपने ज्ञान के अभिमान में भगवान् महावीर से शास्त्रार्थ करने के विचार से भगवान महावीर के पास आया. भगवान महावीर के निकट आते ही उसकी दुर्भावना सद्भावना/सत् श्रद्धा के रूप में परिणत हो गई और उसने तत्काल वह अचिन्त्य लाभ प्राप्त किया जो कि उसे अनेक जन्मों के गहन परिश्रम से भी प्राप्त न होता। इसे कहते हैं आध्यात्मिक सौभाग्य।
दर्पण के सामने खड़े होकर मुख की आकति जैसी की जावे. दर्पण में उसी प्रकार का प्रतिबिम्ब पड़ेगा। मुख पर यदि घाव का चिह्न या कुष्ट का दाग अथवा कोई मसा आदि होगा, तो वह दर्पण में स्पष्ट दिखेगा। जो मनुष्य दर्पण में अपना सौन्दर्य देखना चाहे, उसे अपना सौन्दर्य बनाकर ही दर्पण देखना चाहिये। ___ एक मूर्ख मनुष्य आँख में काजल लगाते समय काजल की एक रेखा अपने गाल पर भी लगा बैठा, जिससे उसके नेत्रों में काजल के कारण जहाँ कुछ सुन्दरता आई, वहीं गाल पर काजल का धब्बा लग जाने पर मुखमण्डल पर असुन्दरता भी आ गई। दैवयोग से उस मूर्ख को उसके बाद एक बड़ा दर्पण दिखाई दिया, उसमें उसे अपने गाल की कालिमा भी दिखाई दी। उसने समझा कि यह कालिमा उसके मुख पर नहीं है शीशे में है, अतः वह शीशे को
0 206_n