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________________ प्रस्तुत ग्रंथ दीघनिकाय साधना की दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रंथ है | यह भगवान बुद्ध के चौंतीस दीर्घाकार उपदेशों का संग्रह है जो कि तीन खंडों में विभक्त है - सीलक्खन्धवग्ग, महावग्ग, पाथिकवग्ग। इन उपदेशों में शील, समाधि तथा प्रज्ञा पर सरल ढंग से प्रचुर सामग्री उपलब्ध है । व्यावहारिक जीवन में आगत वस्तुओं एवं घटनाओं से जुड़ी हुई उपमाओं के सहारे इसमें साधना के विभिन्न अंगों पर प्रकाश डाला गया है। बुद्ध की देशना सरल तथा हृदयस्पर्शी हुआ करती थी। उनकी यह शैली व्याख्यात्मिका थी पर कभी-कभी धर्म को सुबोध बनाने के लिये 'चूळनिद्देस' जैसी अट्ठकथाओं का उन्होंने सृजन किया । प्रथम धर्मसंगीति में बुद्धवचन के संगायन के साथ इनका भी संगायन हुआ। तदनंतर उनके अन्य वचनों पर भी अट्ठकथाएं तैयार हुईं। जब स्थविर महेन्द्र बुद्ध वचन को लेकर श्रीलंका गये, तो वे अपने साथ इन अट्ठकथाओं को भी ले गये । श्रीलंकावासियों ने इन अट्ठकथाओं को सिंहली भाषा में सुरक्षित रखा । पांचवी सदी के मध्य में बुद्धघोष ने उनका पालि में पुनः परिवर्तन किया । दीघनिकाय के अर्थों को प्रकाश में लाते हुए बुद्धघोष ने 'सुमङ्गलविलासिनी' नामक दीघनिकाय-अट्ठकथा का प्रणयन किया । यह भी तीन भागों में विभक्त है। इसके द्वितीय भागमहावग्ग-अट्ठकथा का मुद्रित संस्करण आपके सम्मुख प्रस्तुत है । हमें पूर्ण विश्वास है कि यह प्रकाशन विपश्यी साधकों और विशोधकों के लिए अत्यधिक लाभदायक सिद्ध होगा। निदेशक, विपश्यना विशोधन विन्यास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009980
Book TitleMahavaggatthakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Buddhism
File Size20 MB
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