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सुत्त-सार
१. पाथिकसुत्त एक समय भगवान मल्ल देश में अनुपिय नाम के निगम में विहार करते थे। एक दिन भिक्षाटन के लिए जाने से पूर्व वे भार्गव-गोत्र परिव्राजक के यहां चले गये । परिव्राजक ने उनसे पूछा क्या यह सही है कि लिच्छवि-पुत्र सुनक्खत्त ने आपको छोड़ दिया है।
भगवान ने कहा सुनक्खत्त ने मुझे कहा था कि मैं आपको छोड़ता हूं। मैं अब आप के धर्म-विनय याने अनुशासन को नहीं मानता । आप मुझे अलौकिक ऋद्धि-बल नहीं दिखलाते । आप मुझे लोगों में आगे करके उपदेश नहीं देते ।
यह सुन कर मैंने उसे ही पूछा था कि क्या मैंने कभी तुझे कहा कि आ कर मेरे धर्म को स्वीकार कर, मैं तुझे अलौकिक ऋद्धि-बल दिखलाऊंगा, मैं तुझे लोगों में आगे करके उपदेश दूंगा । तूने ही वज्जिगाम में अनेक प्रकार से मेरी, धर्म की तथा संघ की प्रशंसा की थी। अब लोग तुम्हें ही दोष देंगे कि तुम श्रमण गौतम के शासन में ब्रह्मचर्य का पालन करने में असमर्थ रहे। मेरे ऐसा कहने पर वह आपायिक के समान इस धर्म-विनय से चला गया ।
तत्पश्चात भगवान ने कहा कि सुनक्खत्त के सामने अचेल कोरक्खत्तिय, अचेल कळारमट्टक तथा अचेल पाथिक के ऐसे प्रसंग भी उपस्थित हुए जिनमें इन लोगों के बारे में मैंने जो-जो भविष्यवाणी की थी वह वैसी की वैसी सही निकली । यह अलौकिक ऋद्धि-बल ही थे, फिर भी वह यही कहता रहा कि भगवान मुझे अलौकिक ऋद्धि-बल नहीं दिखलाते और वह इस धर्म-विनय से चला गया ।
तदनंतर भगवान ने लोगों की इस मान्यता के बारे में प्रकाश डाला कि सृष्टि ईश्वर अथवा ब्रह्मा की बनायी हुई है। उन्होंने बतलाया कि कोई समय ऐसा आता है जब इस लोक का प्रलय
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