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काल में मार के तीन बंधनों के कट जाने से सोतापन्न हो गये हैं, वे फिर कभी तीन अपायों में नहीं गिर सकते और नियत रूप से संबोधि प्राप्त करने में लगे हैं। और यहां सकदागामी भी हैं।
भगवान ने यह सारा वृत्तांत जनवसभ यक्ष से सुन कर और स्वयं अभिज्ञा से जान कर इसे आयुष्मान आनन्द को बताया । आयुष्मान आनन्द ने इसे भिक्षुओं, भिक्षुणियों, उपासकों, उपासिकाओं को बतलाया । यही ब्रह्मचर्य ऋद्धियुक्त, उन्नत, विस्तारित, विख्यात और विशाल हो कर देवों तथा मनुष्यों में प्रकाशित हुआ।
६. महागोविन्दसुत्त
एक समय जब भगवान राजगह के गिज्झकूट पर्वत पर विहार कर रहे थे, पञ्चसिख नाम का गंधर्वपुत्र ढलती रात में उनके पास आया और कहने लगा कि मैंने जो तावतिंस देवों के मुँह से सुना है, उसे आपसे कहूंगा ।
__ भगवान की अनुमति पा कर उसने कहा कि बहुत दिन पहले एक उपोसथ की रात में सभी तावतिंस देव सुधर्मा-सभा में बैठे थे । बहुत बड़ी देव-परिषद चारों ओर बैठी थी । चारों दिशाओं के लोकपाल चारों महाराजा भी बैठे थे । उस समय तावतिंस देव इस बात से अत्यंत प्रसन्न हो रहे थे कि भगवान के यहां से ब्रह्मचर्य का पालन कर जो लोग देव-लोक में आये हैं वे छवि और यश में अन्य देवों से बढ़-चढ़ कर हैं।
देवों के इंद्र सक्क ने भी इसका अनुमोदन किया और भगवान के गुणों का बखान किया । इतने में सनकुमार ब्रह्मा भी वहां पर आ गये। उन्होंने भी तावतिंस देवों की अभिव्यक्ति का अनुमोदन किया, देवेंद्र सक्क से भगवान के गुणों को सुना और फिर देवों को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान बहुत समय पहले भी महाप्रज्ञावान थे।
उन्होंने कहा कि बहुत पहले दिसम्पति नाम का राजा राज्य करता था । गोविन्द नाम का ब्राह्मण उसका पुरोहित था । गोविन्द का पुत्र जोतिपाल था । रेणु राजपुत्र, जोतिपाल और अन्य छह क्षत्रिय- ये आठों मित्र थे। गोविन्द ब्राह्मण के मरने पर उसका स्थान जोतिपाल ने ले लिया जो अपने पिता से भी बढ़-चढ़ कर पंडित और अर्थदर्शी निकला | इस पर लोगों ने उसका नाम 'महागोविन्द' रख दिया।
कालांतर में राजा का भी देहांत हो गया और राजपुत्र रेणु का राज्याभिषेक हुआ। फिर रेणु
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