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५. जनवसभसुत्त
एक समय भगवान नातिका में गिञ्जकावसथ में विहार करते हुए कासी और कोसल, वज्जी और मल्ल, चेति और वंस, कुरु और पञ्चाल तथा मच्छ और सूरसेन नामक जनपदों में बुद्ध, धर्म और संघ की परिचर्या करने वाले मृत परिचारकों की पारलौकिक गति का बखान कर रहे थे । आयुष्मान आनन्द के मन में हुआ कि भगवान को अङ्ग और मगध के परिचारकों की गति का भी बखान करना चाहिए क्योंकि वहां पर भी बुद्ध, धर्म और संघ के प्रति श्रद्धा रखने वाले बहुत लोग थे और मगधराज बिम्बिसार तो मरते दम तक भगवान का यशोगान करते रहे | उपयुक्त समय पा कर आयुष्मान आनन्द ने भगवान से इस बारे में निवेदन कर दिया।
कालांतर में भगवान ने अपने समाहित चित्त से मगध के परिचारकों की पारलौकिक गति को जान लिया और बाद में आनन्द को बतलाया कि मेरे ऐसा जान लेने के पश्चात मगधराज बिम्बिसार मेरे सामने जनवसभ नामक यक्ष के रूप में प्रकट हुआ और मुझसे कहा कि मैं अब सातवीं बार वेस्सवण महाराज का मित्र हो कर उत्पन्न हुआ हूं | जब से मैं आप के प्रति श्रद्धावान हुआ हूं तब से मेरी अपाय गति नहीं हुई है और मैं सकदागामी होने के लिए आशान्वित हूं।
जनवसभ ने यह भी बतलाया कि पिछले दिनों उपोसथ को वैशाख पूर्णिमा की रात को सभी तावतिंस देवता सुधर्मा सभा में इकट्ठे होकर बैठे थे। चारों ओर देवताओं की बड़ी भारी सभा लगी थी। चारों दिशाओं के लोकपाल चारों महाराजा भी बैठे थे। उस समय इंद्र के साथ-साथ सभी तावतिंस देवता इस बात से बहुत प्रसन्न थे कि सुगत के शासन में ब्रह्मचर्य का पालन करके हमारे लोक में आये हुए नये देव कांति, आयु और यश में दूसरों से बढ़-चढ़ कर हैं। उन्हें इस बात से भी प्रसन्नता हुई कि 'देव-लोक भर रहा है; असुर-लोक क्षीण हो रहा है।'
तभी वहां पर बड़े भारी तेज-पुंज के साथ सनकुमार ब्रह्मा भी प्रकट हुए । आठ अंगों से युक्त ब्रह्मस्वर में उन्होंने तावतिंस देवताओं को संबोधन करते हुए कहा --
• भगवान लोगों के हित-सुख के लिए प्रयत्नशील हैं। जो कोई बुद्ध, धर्म और संघ की शरण में गये हैं और जिन्होंने शीलों को पूरा किया है वे किसी न किसी देवलोक में उत्पन्न होते हैं। सब से हीन शरीर पाने वाला भी गंधर्व का शरीर पा लेता है।
* सब कुछ जाननहार, देखनहार, अरहंत-अवस्था प्राप्त, सम्यक संबुद्ध को चार ऋद्धिपाद प्राप्त हैं - छंद, वीर्य, चित्त एवं मीमांसा । नाना प्रकार की ऋद्धियों की सिद्धि इन्हीं चार
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