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सुत्त-सार
१. महापदानसुत्त एक समय सावत्थी में अनाथपिण्डिक के जेतवन आराम में विहार करते हुए भगवान ने भिक्षुगण के अनुरोध पर उन्हें पूर्वजन्म-संबंधी धार्मिक कथा कही । उन्होंने बतलाया कि आज से इक्यानवे कल्प पहले विपस्सी भगवान, अरहंत और सम्यक संबुद्ध संसार में उत्पन्न हुए थे। उनके बाद सिखी, वेस्सभू, ककुसन्ध, कोणागमन, कस्सप और वे स्वयं सम्यक संबुद्ध हुए हैं।
इन सबका संक्षिप्त परिचय देने के बाद उन्होंने विपस्सी भगवान की जीवनी का विस्तार से उल्लेख करते हुए बतलाया कि उनके पिता राजा बन्धुमान और माता देवी बन्धुमती थी। उनकी राजधानी का नाम भी बन्धुमती था । वे तुसित देव-लोक से च्युत हो कर, स्मृति और संप्रज्ञान के साथ, अपनी माता की कोख में प्रविष्ट हुए थे। उनके उत्पन्न होने पर नैमित्तिक ब्राह्मणों ने बतलाया था कि इनका शरीर महापुरुष के बत्तीस लक्षणों से युक्त है | यदि ये घर में रहे तो चक्रवर्ती राजा होंगे और घर से बे-घर हो प्रव्रजित हुए तो सम्यक संबुद्ध होंगे।
राजा बन्धुमान ने विपस्सी कुमार के लिए सर्व-प्रकार की सुख-सुविधाएं जुटायीं और पांचों कामगुणों का प्रबन्ध करवाया । परंतु अलग-अलग अवसरों पर वृद्ध, रोगी, मृत और संन्यासी को देख कर उनके मन में निर्वेद जागने से वे अपने सिर-दाढ़ी मुँड़वा, काषाय वस्त्र पहन, घर से बे-घर हो प्रव्रजित हो गये।
तत्पश्चात एकांत में ध्यान करते समय उनके मन में यह विचार आया कि यह संसार बहुत कष्ट में पड़ा है। कोई जन्मता है, जीर्ण होता है, मर जाता है। एक स्थिति से च्युत होता है और दूसरी में उत्पन्न हो जाता है। इससे बाहर निकलने का रास्ता कैसे जाना जाये ? तब सही चिंतन के द्वारा, अपनी प्रज्ञा जगा कर, उन्होंने यह जान लिया कि नामरूप के कारण विज्ञान, और विज्ञान
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