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भगवान का यह धर्मोपदेश सुन लोहिच्च को ऐसे लगा मानों नरक के गड्ढे में गिरते हुए उसे ऊपर खींच कर धरती पर रख दिया गया हो । भाव-विभोर होकर उसने भगवान से याचना की कि आप मुझे जीवन भर के लिए उपासक स्वीकार करें ।
१३. तेविज्जसुत्त
एक समय भगवान कोसल देश के मनसाकट ग्राम के उत्तर की ओर अचिरवती नदी के तीर पर आम्रवन में विहार कर रहे थे। उस समय वासेट्ठ और भारद्वाज नाम के दो ब्राह्मण माणवक उनके पास गये और उनसे अपना यह विवाद सुलझाने के लिए कहा कि ब्रह्मा की सलोकता के लिए सही वा सीधा मार्ग कौन सा है। ये दोनों ही अपने-अपने आचार्य के बतलाये हुए मार्ग को सही वा सीधा बतला रहे थे।
इस पर भगवान द्वारा अलग-अलग प्रश्न पूछे जाने पर वासेट्ठ माणवक ने स्वीकार किया कि विद्य ब्राह्मणों में एक भी ब्राह्मण ऐसा नहीं है जिसने ब्रह्मा को अपनी आंख से देखा हो, इनके एक भी आचार्य-प्राचार्य ने सात पीढ़ी तक ब्रह्मा को आंख से नहीं देखा। यही नहीं, जो त्रैविद्य ब्राह्मणों के पूर्वज, मंत्रों के प्रवक्ता ऋषि थे उन्होंने भी कहीं पर यह नहीं कहा - 'जहां ब्रह्मा है, जिससे ब्रह्मा है, जहां से ब्रह्मा है हम उसे जानते हैं, हम उसे देखते हैं।'
इस पर भगवान ने कहा कि ऐसा होने पर तो त्रैविद्य ब्राह्मणों का यह कथन सर्वथा अ-प्रामाणिक हो जाता है कि ब्रह्मा की सलोकता के लिए 'अमुक' मार्ग है क्योंकि उनमें से, पहले-पीछे. न इसे किसी ने जाना. न देखा- जैसे अंधों की पंक्ति में पहले वाला भी नहीं
वाला भी नहीं देखता, बीच वाला भी नहीं देखता, पीछे वाला भी नहीं देखता ।
इसके अतिरिक्त जब ब्राह्मण बनाने वाले धर्मों को छोड़ कर और अ-ब्राह्मण बनाने वाले धर्मों को अपना कर त्रैविद्य ब्राह्मण ब्रह्मा-सहित विभिन्न देवताओं का आह्वान करते हैं, तब ऐसा नहीं हो सकता कि वे मृत्यु के पश्चात ब्रह्मा की सलोकता प्राप्त करें- जैसे नदी के इस तीर पर खड़े व्यक्ति के आह्वान करते रहने से नदी का दूसरा तीर इस ओर नहीं आ जाता।
___ ऐसे ही ब्राह्मण बनाने वाले धर्मों को छोड़ कर और अ-ब्राह्मण बनाने वाले धर्मों को अपना कर पांच कामभोगों में डूबे हुए विद्य ब्राह्मण मृत्यु के पश्चात ब्रह्मा की सलोकता प्राप्त करें, ऐसा नहीं हो सकता - जैसे नदी के इस पार दृढ़ सांकल से पीछे बांह करके मज़बूत बंधन से बँधा हुआ
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