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पालि-पंडितों ने अंतिम प्रूफ देख जाने का महत्वपूर्ण कार्य संपादन किया है। सबसे कठिन काम था इस बृहद साहित्य को कंप्यूटर में निवेशित करना, प्रूफ पढ़ने में आयी भूलों को सुधारना और पेज सेटिंग करना। इस कार्य में भी अपना हाथ बटा कर साधकों ने इसे बड़ी दक्षतापूर्वक संपन्न किया है। इसी प्रकार किसी योग्य साधक ने इस ग्रंथ के प्रत्येक सूत्र का सार सरल हिंदी में लिखा है तथा विपश्यना, आदि से संबंधित पेय्यालों तथा अन्य महत्वपूर्ण अंगों का अनुसंधानात्मक चयन किया है।
विपश्यना साधना की विलुप्त धर्म-गंगा को भगीरथ सदृश पुनः भारत में लाने वाले विश्व विपश्यी परिवार के कुल-प्रमुख परम पूज्य गुरुदेव श्री सत्यनारायणजी गोयन्का के प्रेरक सान्निध्य तथा मंगलमय मार्गदर्शन के फलस्वरूप ही यह पालि प्रकाशन का कार्य संभव हो सका है। उन्होंने प्राक्कथन तथा बृहद भूमिका लिख कर विपश्यी साधकों, शोधकों और सामान्य पाठकों का बड़ा उपकार किया है। हम उनके प्रति सादर नत-मस्तक हैं।
मानद मंत्री, विपश्यना विशोधन विन्यास
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