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(लीनत्थप्पकासना) ५. अङ्गुत्तरनिकाय टीका ( सारत्थमञ्जूसा) ६. नेत्तिप्पकरण टीका (लीनत्थवण्णना) ७. नेत्तिविभाविनी टीका ।
अभिधम्मपिटक टीका -
१. धम्मसङ्गणि मूलटीका २. धम्मसङ्गणि अनुटीका ३. विभङ्ग मूलटीका ४. विभङ्ग अनुटीका ५. पञ्चप्पकरण मूलटीका ६. पञ्चप्पकरण अनुटीका ।
उपरोक्त ग्रंथों के अतिरिक्त ब्रह्मदेश में प्राप्य अन्य टीकाओं- अनुटीकाओं तथा इतिहास, नीति, छंद, पिंगल, व्याकरणादि विषयों पर उपलब्ध साहित्य को भी प्रकाशित करने की योजना है ।
प्रस्तुत प्रकाशन
छट्ठ संगायन का समस्त साहित्य ग्रंम लिपि में अवश्य संपादित हुआ परंतु इसी कारण उसे ब्रह्मदेशीय संस्करण नहीं कह सकते । छट्ठ संगायन में ब्रह्मदेशीय विद्वान भिक्षुओं के अतिरिक्त श्रीलंका, थाईलैंड और कंपूचिया के ही नहीं बल्कि भारत भी पालि भाषा के कुछ मूर्धन्य विद्वान सम्मिलित हुए थे। सबकी सहमति से ही यह पाठ स्वीकृत हुआ था । अतः जब तक भविष्य में कभी आवश्यकता पड़ने पर सप्तम संगायन का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन न हो, तब तक इस ऐतिहासिक छट्ठ संगायन द्वारा स्वीकृत तिपिटक, उसकी अट्ठकथाओं, टीकाओं और अनुटीकाओं का समग्र वाङ्मय ही प्रामाणिक माना जाएगा। अतएव विपश्यना विशोधन विन्यास उसी के कलेवर को स्वीकार कर प्रथमतः उसे देवनागरी लिपि में प्रकाशित कर रहा है ।
इस प्रकाशन की कुछ अन्य विशेषताएं
(१) आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति का पूरा-पूरा लाभ उठाते हुए विपश्यना विशोधन विन्यास ने समस्त प्रकाशनीय साहित्य को कंप्यूटर में निवेशित करवाया है। इससे इस अनमोल संपदा के चिर-स्थाई बने रहने की संभावना दृढ़ हुई है। साथ ही भविष्य में इस संपूर्ण साहित्य अथवा इसके किसी भी अंश के पुनर्मुद्रण की सहज सहूलियत उपलब्ध हुई है ।
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(२) विपश्यना विशोधन विन्यास की यह योजना है कि इस संपूर्ण साहित्य को CD-ROM सिस्टम में भी निवेशित कर दिया जाय, ताकी यह अनमोल संपदा सदियों तक सुरक्षित रह सके ।
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