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सद्धर्मसंरक्षक
हुए आप दिल्ली जा पहुँचे । वहाँ से श्रीसंघ के साथ श्रीहस्तिनापुर तीर्थ की यात्रा करने गये। वहाँ से वापिस आकर वि० सं० १९०६ ( ई० स० १८४९) का चौमासा दिल्ली में किया ।
चौमासे उठे आपने फिर पंजाब की तरफ विहार किया । अम्बाला, सामाना, साढौरा, मालेरकोटला, पटियाला, लुधियाना, होशियारपुर, जालंधर, जंडियाला गुरु, अमृतसर, लाहौर और रामनगर आदि अनेक ग्रामों और नगरों में विचरण करते हुए आप पिंडदादनखाँ पधारे और वि० सं० १९०७ ( ई० स० १८५०) का चौमासा वहीं किया । चौमासे उठे रावलपिंडी, भेहरा, रामनगर, किला- दीदारसिंह, पपनाखा होते हुए आप और मुनि प्रेमचन्दजी गुजरांवाला पधारे । यहाँ कुछ समय व्यतीत करके अपने शिष्य मुनि मूलचन्दजी को (जो वि० सं० १९०३ से सं० १९०८ तक लगातार छह वर्षों तक गुजरांवाला में लाला कर्मचन्दजी दूगड शास्त्री से शास्त्रों का अभ्यास कर रहे थे) साथ में लेकर विहार किया और ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए पानीपत पधारे । यहाँ मुनि प्रेमचन्दजी को छोडकर और मुनि मूलचन्दजी को अपने साथ लेकर दिल्ली पधारे । यहाँ आपने रामनगर के कृपाराम बीसा ओसवाल गद्दिया गोत्रीय और जीवनमल अरोडा को दीक्षाएं देकर दोनों को अपना शिष्य बनाया । दीक्षाएं वि० सं० १९०८ आषाढ सुदि - १३ ( ई० स. १८५१) को हुई | नाम वृद्धिचन्द तथा आनन्दचन्द क्रमशः रखे । वि० सं० १९०८ (ई० स० १८५१) का चौमासा मुनि प्रेमचन्द ने पानीपत में किया और आपने मूलचन्दजी, वृद्धिचन्दजी आनंदचन्दजी इन तीन साधुओं के साथ दिल्ली में किया ।
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [84]