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उत्कट विरोध का डटकर मुकाबिला बतलाओ? जैनागमों-शास्त्रों में मुहपत्ती बाँधने का वर्णन तो है नहीं । इससे यह स्पष्ट है कि मुखपत्ती मुंह पर बाँधना जैनशास्त्रसम्मत मुनि का वेष नहीं हैं । जो साधु जैन-शास्त्रसम्मत वेषधारी है उन्हें शास्त्रों ने स्वलिंगी कहा है। गृहस्थ के वेष में गृहलिंगी कहा जाता है। इन दोनों के सिवाय जितने भी लिंगी है वे सब अन्यलिंगी हैं। तो आप ही बतलाइये मुखबंधा कौनसा लिंग है ? अब कहो कि जैनशास्त्रविपरीत मुखबंधे वेषधारियों को स्वलिंगी मानना नितान्त मिथ्यात्व का उदय है या नहीं ?" यह चर्चा-वार्ता पांच दिनों तक चलती रही।
तब वे स्थानकमार्गी साधु और भाई कहने लगे - "छोडोजी चर्चा को । इससे राग-द्वेष बढ़ता है।" इस प्रकार चर्चा का भी अन्त आ गया।
अब आप अम्बाला शहर से विहार कर अम्बाला छावनी गये और प्रेमचन्द को साथ लेकर जमुना पार जाकर वि० सं० १९०४ (ई० स० १८४७) का चौमासा बामनौली-जिला मेरठ (उत्तर प्रदेश) में जा किया। चौमासे उठे आप गुरु-शिष्य दिल्ली आये। यहां एक महीना रह कर पंजाब की तरफ विहार किया और ग्रामानुग्राम विचरते हुए वि० सं० १९०५ (ई० स० १८४८) का चौमासा रामनगर में किया । इस चौमासे में आपने कृपाराम भावडा तथा जीवनमल अरोडा को प्रतिबोधित किया । यहाँ पर दिल्ली के भाई आये और आपसे विनती की कि "गुरुदेव ! आप दिल्ली पधारो । वहा से आपश्री की निश्रा में श्रीहस्तिनापुर तीर्थ की यात्रा करने के लिये संघ निकालना है।" उनकी विनती को ध्यान में रखते हुए आप दोनों ने चौमासे उठे दिल्ली की ओर विहार कर दिया । ग्रामानुग्राम विचरते
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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