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उग्र विरोध का झंझावात
५३ रहते थे। मूलचन्द के पिता का नाम सुक्खेशाह और माता का नाम महताबकौर था । बीसा ओसवाल (भावडे) बरड गोत्रीय थे और स्थानकमार्गी मत के अनुयायी थे।
इस समय पूज्य बूटेरायजी की कीर्ति सारे पंजाब में चारों तरफ फैल चुकी थी। आपके तप और त्याग की गहरी छाप सब के दिलों में अपना घर कर चुकी थी। आपकी सत्यनिष्ठा, परिषहों तथा उपसर्गों को सहन करने में वज्रसमान दृढता, वीतराग सर्वज्ञ प्रभु के सिद्धान्तों की प्ररूपणा तथा प्रसार की अनोखी भावना ने मिथ्यादृष्टियों के सिंहासनों को हिला दिया था । मूलचन्दजी के माता-पिता चाहते थे कि उनके बेटे की दीक्षा बूटेरायजी के पास न हो । वह ऋषि अमरसिंह के पास दीक्षा ले । क्योंकि इनके मातापिता कट्टर स्थानकमार्गी थे । पर मूलचन्दजी के मामा लाला जिवन्देशाह दूगड तथा मूलचन्दजी पसरूर में ऋषि बूटेरायजी की चर्चा सुन चुके थे । इनको आपकी श्रद्धा हृदयंगम हो चुकी थी। इसलिये लाला जिवन्देशाह तथा मूलचन्दजी के दृढ संकल्प के सामने मूलचन्दजी के माता-पिता को झूकना पडा और बरबस उन्हें अपने लाडले को आपके पास दीक्षा लेने की आज्ञा देनी पडी। मूलचन्दजी को दीक्षा देने के बाद वि० सं० १९०२ (ई० स० १८४५) का चौमासा आपने गुजरांवाला में मूलचंदजी के साथ किया । चौमासे उठे मूलचन्दजी को गुजरांवाला में लाला कर्मचन्दजी साहब दुग्गड शास्त्री से जैनशास्त्रों के अभ्यास करने के लिये छोड गये और आपने पटियाले की तरफ विहार किया । १. इस जीवनचरित्र के लेखक श्रावक पंडित श्रीहीरालालजी दुग्गड के पितामह ।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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