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मुखपत्ती-चर्चा ___ऋषि अमरसिंहजी - फिर तो मुंहपत्ती को हाथ में रखकर मुंह ढाँकने का क्या प्रयोजन ? मुँह पर बाँधने से ही इस का मुँहपत्ती नाम सार्थक है। इस से स्पष्ट है कि मुँह बाँधना चाहिये ? ___ऋषि बूटेरायजी - मुंहपत्ती का अर्थ है जो वस्तु मुख के लिये काम में आवे । जैसे पगडी, टोपी आदि सिर पर रखी जाती है, फिर वह चाहे कहीं पडी हो, पगडी और टोपी ही कहलायेगी। जूता पग में पहनने के काम आता है, फिर वह कहीं भी रखा हो, जूता ही कहलायेगा। आप लोग जिस मकान को स्थानक कहते हो और उसे स्थानकमार्गी साधु-साध्वियों का निवासस्थान कहते हो, उस मकान में चाहे कोई साधु-साध्वी कभी भी न ठहरा हो, वह स्थानक ही कहलायेगा । इसी प्रकार महपत्ती का सही अर्थ यही है कि जो वस्त्र मुख के लिये काम आवे, फिर वह चाहे हाथ में हो चाहे कहीं रखा हो । इसलिये इस का अर्थ मुख पर बाँधने का संभव नहीं है।
दशवैकालिक सूत्र में मुखवस्त्रिका के लिये 'हत्थगं' (हस्तक) शब्द का प्रयोग किया है । इससे भी प्रमाणित होता है कि मुखवस्त्रिका हाथ में रखनी चाहिये और बोलते समय इस से मुख को ढांककर बोलना चाहिये । यथा -
"अणुन्नवित्तु मेहावी, परिछिन्नम्मि संवुडे । हत्थगं संपमज्जित्ता, तत्थ भुंजिज्ज संजये ॥ (५।८३)
व्याख्या- 'तत्र अणुन्नवि त्ति' अनुज्ञाप्य सागारिकपरिहारतो विश्रमणव्याजेन तत्स्वामिनमवग्रहं 'मेधावी' साधु, 'प्रतिच्छन्ने' तत्र कोष्ठादौ 'संवृत' उपयुक्तः सन् साधुः ईर्याप्रतिक्रमणं कृत्वा तदनु 'हत्थगं' हस्तकं मुखवस्त्रिकारूपम्' आदायेति वाक्यशेषः,
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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