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मुखपत्ती-चर्चा
(आ) यदि मुँह पर मुँहपत्ती बाँधने से वायुकाय आदि की हिंसा का बचाव है और न बाँधने से हिंसा होना मान ली जाय, तो मुख बांधने से जंभाई, डकार, खासी और शब्द के वेग तो रुक गये, परन्तु नाक द्वारा निकलनेवाले निरन्तर श्वास-निच्छ्वास तथा छींक एवं अधिष्ठान (आसन-स्थान) से निकलनेवाले वायु (पाद) द्वारा होने वाली हिंसा के बचाव के लिये मुख के साथ उपर्युक्त नाकादि दोनों को भी बाँधना चाहिये? परन्तु ऐसा तो आप लोग भी नहीं करते? छींक तथा पाद में निकलनेवाले शब्द के साथ वायु का वेग तो श्वासोच्छ्वास और मुख से निकलनेवाले बाष्पादि से भी अधिक वेगपूर्ण होता है । इससे स्पष्ट है कि तीनों स्थानों से निकलनेवाले शब्द, वायु और बाष्प से हिंसा संभव नहीं।
(इ) परन्तु चौबीस घंटे मुख पर मुंहपत्ती बाँधने से मुख के चारों तरफ बाष्प और थूक के जमा हो जाने से त्रस जीवों की हिंसा संभव है। आगम में थूकादि १४ अशुचि स्थानों से सम्मूच्छिम त्रस
१. श्रीप्रज्ञापनासूत्र में सम्मच्छिम मनुष्यों के उत्पत्तिस्थान चौदह कहे हैं।
बिना माता-पिता के उत्पन्न होनेवाले अर्थात् स्त्री-पुरुष के समागम के बिना ही उत्पन्न होनेवाले जीव सम्मूच्छिम कहलाते हैं। पैंतालीस लाख योजन परिमाण मनुष्य क्षेत्र में ढाई द्वीप और समुद्रो में, पन्द्रह कर्मभूमियों, तीस अकर्मभूमियों और छप्पन अन्तर्वीपों में गर्भज मनुष्य रहते हैं। उनके मल-मूत्रादि से सम्मूच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं। उनकी उत्पत्ति के स्थान चौदह हैं। उनके नाम इस प्रकार है :
(१) उच्चारेसु-विष्टा में, (२) पासवणेसु-मूत्र में, (३) खेलेसु-थूक-कफ में, (४) सिंघाणेसु-नाक के मैल में, (५) वंतेसु-वमन में, (६) पित्तेसु-पित्त में, (७) पूएसु-पीप, राध और दुर्गन्ध युक्त बिगडे घाव से निकले हुए खून में, (८) सोणिएसु-शोणित-खून में, (९) सुक्केसु-शुक्र-वीर्य में, (१०) सुक्कपुग्गलपरिसाडेसु-वीर्य के त्यागे हुए पुद्गलों में, (११) विगयजीवकलेवरेसु-जीवरहित मुर्दा शरीर में, (१२) थी-पुरीस-संजोएसु स्त्री-पुरुष के संयोग (समागम) में,
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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