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________________ सत्यसाधक परमगुरुदेव पूज्यपाद गुरुदेव श्रीबूटेरायजी महाराज का चरित्र सांप्रत तपगच्छ के लिए एक आधारशिला-समान है । वे न होते, वे पंजाब को व मुहपत्ति के दोरे को छोडकर गुजरात में एवं संविग्न पक्ष में-तपगच्छ में न आये होते और क्रियोद्धार माना जाय ऐसा पुरुषार्थ किया न होता, तो शायद आज हमारी, संघ की एवं गच्छ की स्थिति अलग ही होती । संवेगमार्ग शायद पुनर्जीवित न होता । इसीलिए लगता है कि वे हमारे वर्तमानकालीन संघ एवं गच्छ की आधारशिला के समान थे। ऐसे महात्मापुरुष का जीवन कितना संघर्षमय था ! कितना बोधदायक, प्रेरक व उपकारक था ! यह समजने के लिए उपयुक्त साधन है यह चरित्रग्रंथ, जो विद्वान् श्रावक श्रीहीरालाल दुग्गड ने लिखा है। इस चरित्र को पढने से पता चलता है कि इस महात्मा-पुरुष का पूरा जीवन सत्य की खोज में एवं साधना में गुजरा था । जहां भी असत्य दिखाई पडा, उन्होंने उसका विरोध किया, उसको नाबूद कर सत्य पाने के लिए संघर्ष किया, और सत्य को पाकर भी उसकी साधना व आराधना करने में मचे रहे । गृहस्थ-अवस्था में जब उन्हें प्रतीति हुई कि संसार निःसार है, और आत्मा एवं आत्मकल्याण की खोज ही वास्तविक है, तब उन्होंने अपनी माता की अनुमति लेकर जहां तक खुद की पहुंच थी, Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book Mukhpage (07-10-2013) (1st-1-11-2013) (2nd-12-11-13) p6.5
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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