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सद्धर्मसंरक्षक आपने अपने १५ साथी साधुओं को अपने विचारों से अवगत कराया। उन सब ने भी आपके विचारों का स्वागत किया और कहा कि "हम लोगों के गुरु तो केवल आप ही हैं । इसीलिए हमारे मन में दूसरे को अपना गुरू बनाने का न तो कभी संकल्प हुआ है
और न कभी होगा ही। आपश्री जिसके शिष्य होना चाहेंगे, वे भी हमारे वन्दनीय ही होंगे। जैसा आपका विचार है उससे हम सब सहमत हैं।"
दूसरे दिन सब साधुओं को साथ में लेकर श्रीआत्मारामजी ने पूज्य बूटेरायजी के स्थान की ओर प्रस्थान किया। बूटेरायजी को भी श्रावकों द्वारा समाचार मिल चुके थे। समाचार पाकर आप बहुत हर्षित हुए। इतने में आत्मारामजी अपने साथियों के साथ वहाँ जा पहुँचे । सब ने विधिपूर्वक आपको वन्दना की और आपने भी सब को सुखसाता पूछी। ___ मुनिश्री आत्मारामजी ने पूज्य बूटेरायजी से अपने मनोगत भावों को प्रगट किया । गुरुवर्य बूटेरायजी, गणि मूलचन्दजी आदि मुनिराजों ने इसे सहर्ष स्वीकार किया । उसी समय सुयोग्य ज्योतिषी को बुलाकर दीक्षाओं का मुहूर्त-निश्चय कर लिया गया । नगरसेठ प्रेमाभाई और सेठ दलपतभाई भी इस निर्णय को सुनकर बहुत हर्षित हुए । गुजरात, सौराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब आदि प्रदेशों में सर्वत्र यह समाचार बिजली की तरह फैल गये । मुनिश्री वृद्धिचन्दजी को जब यह समाचार मिले तो वह भी विहार कर इस मंगल प्रसंग में उपस्थित होने के लिए अहमदाबाद पधार गये । श्रीआत्मारामजी का संवेगी दीक्षा महोत्सव देखने के लिए बडी-बडी दूर से विहार कर बहुत मुनिराज अहमदाबाद पधार गए । बहुत
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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