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सद्गुरु की खोज में योग न था। जो साधु-संत यहाँ आते थे, वे सद्गुरु की कोटि से बहुत पीछे थे। सद्गुरु की खोज में
बूटासिंह माता की आज्ञा लेकर सद्गुरु की खोज में अपने गाँव से एकाकी निकल पडा । जब कभी और कहीं पर उसे किसी भी मतमतांतर के साधु की खबर पडती, झट उसीके वहाँ जा पहुंचता। कई-कई दिनों और महीनों उनके सहवास में रहता, उनकी साधुचर्या को देखकर उसे संतोष न होता, और न ही उनका मतसिद्धान्त ही रुचता । वह कभी सिक्ख गुरुओं के वहाँ जाता, कभी फकीरों के पास जाता, कभी नाथों (कानफटे योगियों) के वहाँ जाता, तो कभी संन्यासी साधुसंतों के वहा जाता, कभी जटाधारी बाबाओं के पास जाता, तो कभी धूनी रमाकर भभूति मलनेवालों की संगति में रहता । पर उसे कहीं भी संतोष न मिलता । बीचबीच में अपने घर लौट आता और जिनकी संगत में वह महीनोंमहीनों तक व्यतीत करके लौट आता था उन सब त्यागियों का वृत्तांत माताजी से कह सुनाता । माता को अपने इकलौते बेटे पर अपार स्नेह था । बेटे को आने-जाने के लिये जितने खर्चे की जरूरत होती, वह बिना रोक-टोक दे देती । बेटे को किसी भी प्रकार से दुःखी नहीं रखती थी। दूसरा इसका था भी कौन? जो कुछ भी जमीन-सम्पत्ति थी, वह इसी लाल के लिये ही तो थी।
बूटासिंह ने सारा पंजाब-राज्य छान मारा । जम्मू-काश्मीर की घाटियों का कोना-कोना देख डाला । काँगडा, कुल्लु की पहाडियों पर भी जहाँ कहीं उसे किसी साधु-संत का पता लगता, वहाँ चला जाता । जहाँ कहीं उसे फकीर, लिंगिये, नाथ, योगी की खबर
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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