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चमत्कार
१२९ अब आपने भी अमृतसर से विहार कर दिया । ग्रामानुग्राम विचरते हुए आप रामनगर पहुँचे । यहाँ पर भी आपके उपदेश से नया जिनमंदिर बनकर तैयार हो चुका था । प्रतिष्ठा का मुहूर्त वि० सं० १९२४ बैसाख वदि ७ (ई०स० १८६७) का निकल चुका था। यहाँ के श्रीसंघ ने पहले निश्चय किया था कि दिल्ली से आई हुई श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथजी की प्रतिमा को मूलनायक के रूप में गादीनशीन किया जावेगा। परन्तु फिर श्रीअजितनाथजी की प्रतिमा को गादीनशीन करने का निर्णय हुआ। चमत्कार
प्रतिष्ठा का दिन समीप आ गया। कल प्रतिष्ठा होनेवाली है। श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा अन्य प्रतिमाओं के साथ विराजमान है। यह प्रतिमा सहसा अपने आप पट्टे पर सरकने लगी । पुजारी बाजार में दौडा आया । यहाँ पहुंचकर उसने सब भाइयों को यह घटना सुनाई । सकल श्रीसंघ गुरुदेव बूटेरायजी को साथ में लेकर श्रीमंदिरजी में इकट्ठा हो गया। प्रतिमाजी को सरकते देख कर सब लोग आश्चर्य-चकित हो गए। सबने मिलकर प्रभु से सविनय सानुनय प्रार्थना की कि "प्रभुजी ! आपकी हम लोगों से क्या अविनय-आशातना हुई है इसका हमें तो कोई पता नहीं है। हम सब छद्मस्थ हैं, भूल के पात्र हैं। आप तो कृपासिंधु है। यदि हम लोगों से कोई अनुचित बात हो गयी हो तो हम सब को क्षमा कीजिये । हे क्षमानिधि ! यदि किसी भी उपाय से हम लोगों को हमारी भूल मालूम पड जावे, तो हम उसके लिये पश्चात्ताप करने और दण्ड लेने को भी तैयार हैं।" सब लोग प्रार्थना करके अपने घरों और दुकानों पर लौट गए, पर चैन किसी को नहीं था। सब बहुत
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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