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________________ १२८ सद्धर्मसंरक्षक पाँच भाई अमरसिंह के पास गए । वहाँ जाकर जयपुरवाले भाई मोतीचन्द ने अमरसिंहजी से कहा कि "आप तो चलने को तैयार हो गये, आपको चाहिए था कि जैसे पूज्य बूटेरायजी आपके पास आकर खिम्मत-खामना कर गए हैं, वैसे ही आपको भी चाहिये था कि यहाँ से रवाना होने से पहले स्वामीजी के पास जाकर खिम्मतखामना करने के बाद विहार करें । पूज्य बूटेरायजी तो आपसे बडे हैं, वह आपके पास आकर खमा गये हैं। आप तो उनसे छोटे हैं, इसलिये आपको भी उनसे खमा आना चाहिये था ।" तब अमरसिंहजी के श्रावक आगबबूला हो गये और एकदम क्रोधावेष में आकर जयपुरवाले मोतीचन्दभाई को मारने के लिये उद्यत हो गये। कहने लगे- “खिम्मत-खामना हो तो गया है। तुम लोग ही साधुओं को लडाते हो । जाओ यहाँ से निकल जाओ।" इस प्रकार वे लोग शोरगुल करके अपना बचाव कर गये । परन्तु अमरसिंहजी ने उस दिन विहार नहीं किया । दूसरे दिन प्रातःकाल जब आप बाहर जंगल (टट्टी-पेशाब) करने के लिए गए तब अमरसिंहजी भी आपके साथ गये । वह आपसे कहने लगे कि "स्वामीजी ! मुझे आपके पास आने में कोई भय नहीं है, परन्तु लोग बडे विचित्र हैं, कुछ करने नहीं देते । मैं तो आपको बार-बार खमाता हूँ।" अमरसिंहजी उसी दिन विहार कर गए । आपने सोचा कि "यह दुषम-पंचमकाल है, लोग कदाग्रही बहुत हैं, आत्मार्थी जीव बहुत थोडे हैं । जो जीव जिज्ञासु है वही धर्मकी खोज तथा तत्त्वों का सम्यग् बोध पाकर प्रतिबोध पा सकता है। कहा भी है कि "जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ ।" Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [128]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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