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पंजाब में पुनः आगमन और कार्य
११७ सेठ आदि भी सवार हो गये । जब नाव नदी के बीच मझधार में पहुँची तब बडे जोर की आँधी आयी । आकाश में घटाटोप अन्धकार हो गया। कुछ सूझ नहीं पडता था । नाविकों के होंसले पस्त हो चुके थे । नाव आँधी के पूर्ण वेग से डगमगाने लगी थी। सबने जीवन की आशा छोड दी । नाव बडे वेग से उल्टी दिशा को चल पडी। सब के चेहरों पर हवाइयाँ छूट रही थीं। सब की निगाहें गुरुदेव के चरणों की तरफ टिकटिकी लगाये कातर दृष्टि से निहार रही थीं। गुरुदेव ने मुस्कराते हुए कहा कि - "भाइयो ! कोई घबराने और चिंता की बात नहीं है। शासनदेव की कृपा से कोई भय नहीं है।" गुरुदेव के मुख से इतने शब्द निकलने की देर थी कि आधी का वेग एकदम शांत हो गया और नाव सुरक्षित किनारे पर जा लगी। गुरुदेव का अपूर्व अतिशय देखकर श्रावकों के चेहरे एकदम प्रफुल्लित हो उठे। ____नाव किनारे पर लगते ही सब लोग नाव से नीचे उतरे । तपस्वीजी इक्के पर सवार होकर, दिल्ली का सेठ घोडे पर सवार होकर
और पुजारी बेलीराम पैदल चलकर तीनों रामनगर शहर में पहुंचे। इनके द्वारा गुरुदेव के चन्द्रभागा (चनाब) नदी के किनारे पर आ पहुँचने के समाचार पाकर नगरवासी हर्ष से नाचने लगे और आबालवृद्ध नर-नारियाँ सब गुरुदेव के दर्शनों को वहाँ जा पहुंचे। सब संघ के साथ गुरुदेव का प्रवेश रामनगर में हुआ।
कुछ दिन यहाँ स्थिरता करने के पश्चात् आप किला-दीदारसिंह और पपनाखा होते हुए गुजरांवाला पधारे । यहाँ दिल्ली से कुछ श्रावक भाई आये और गुरुदेव को विनती की कि “दिल्ली से हस्तिनापुर के लिये छ'री पालता यात्रासंघ जाने का निर्णय हुआ है।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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