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सद्धर्मसंरक्षक बलवान । यह बात भूलने जैसी नहीं है। मूला! तू एक काम कर, शुद्ध चारित्रवान त्यागी साधु तैयार कर ऐसे साधुओं से ही सब । सुधार सम्भव है।
मूला! क्या तू इन कारणों को समझा है और उनका विचार किया है ? यतियों, श्रीपूज्यों की हदबाहर की सत्ता, संवेगी साधुओं की शिथिलता, स्थानकमार्गियों का आगम - विरुद्ध आचार और प्रचार, एकलविहारी साधुओं का एकान्त-क्रिया आग्रह, निश्चयनयवादियोंकी रूखी आध्यात्मिकता, शुद्ध चारित्रवान त्यागी श्वेताम्बर संवेगी साधुओं की कमी ऐसे अनेक कारणों से श्वेताम्बर साधुसंस्था का विकास रुक गया है। यही कारण है कि गृहस्थ श्रावकों में भक्ष्याभक्ष्य आदि का विचार नहीं रहा। इसका अमोघ उपाय मात्र एक ही है और वह यह है कि शुद्ध चारित्रवान त्यागी ज्ञानवान श्वेताम्बर संवेगी साधुओं की वृद्धि हो । "
मूलचन्दजी - "गुरुदेव ! इस जमाने में साधु बनाने में बहुत कठिनाइयाँ और रुकावटें आती हैं। श्रावक-श्राविकायें अपने बच्चों को साधु बनाना पसंद नहीं करते । यदि कोई साधु होनेवाला जीव उत्तम हो तो ठीक, नहीं तो वह साधुवेष को भी लजावेगा। फिर भी आपकी आज्ञा का पालन अवश्य होगा ।"
पूज्य बूटेरायजी महाराज परम आध्यात्मिक योगीराज थे। आप अपने अध्यात्म ज्ञान - ध्यान में ही तल्लीन रहते थे। सख्त जाडों में भी मात्र एक सूती चादर में ही रहते थे और आहार के
१. पूज्य मुनिश्री बूटेरावजी अपने सुयोग्य शिष्य मुनिश्री मूलचन्दजी को 'मूला' नाम से संबोधित करते थे।
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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