________________
इस चिंतन से कुछ भी न होगा, यह तो भ्रम है। इस तरह का चिंतन कोई धोखा न दे पाएगा आपको। किसी को उसने कभी धोखा न दे पाया। वरन जब मैं यह कह रहा हूं और अपने को समझा रहा हूं, कि अरे यह शरीर तो मरेगा, इसको छोड़ो, छोड़ो, तब जानना चाहिए कि मैं जान नहीं रहा कि शरीर मरेगा। जो जानेगा कि शरीर मरेगा, एक क्षण भी जान लेना, समझाने का प्रश्न बाकी नहीं रह जाता। अज्ञान में केवल समझाना है। ज्ञान खोल जाता है आंख, भेद स्पष्ट हो जाता है; समझाना नहीं होता । मैं आपको नहीं कहता कि अपने मन में इसका चिंतन करें कि मैं देह नहीं हूं। वही इस चिंतन को करेगा, जो जानता है कि देह है। मैं चिंतन को नहीं कहता । यह चिंतन व्यर्थ है। मैं जानने को कहता हूं।
महावीर का मार्ग चिंतना का मार्ग नहीं, महावीर का मार्ग विचार का मार्ग नहीं, जानने का, आंख खोल कर देख लेने का मार्ग है। महावीर का मार्ग श्रद्धा का मार्ग नहीं, अंधी श्रद्धा का मार्ग नहीं, बहुत वैज्ञानिक है। जिसे जान लेना, देख लेना, उसे मान लेना | उसके पहले कोई मान्यता किसी काम की नहीं है । वे सब डूबते हुए आदमी की थोथी अपनी धारणाएं हैं आलंबन की, झूठे आसरों की, झूठे सहारों की । कोई झूठा सहारा काम न देगा । कोई इस तरह की झूठी शरण काम नहीं देगी, जानना होगा।
और जाना जा सकता है। इसी जानने की प्रक्रिया को हम दर्शन कहते हैं। भारत ने जो पैदा किया है, वह फिलॉसफी नहीं है। और नासमझ हैं वे, जो फिलॉसफी और दर्शन को पर्यायवाची समझते हैं! फिलॉसफी है चिंतना, सोचना, विचारना - जो अज्ञात है उसके संबंध में सोच-विचार करना ।
लेकिन जो अज्ञात है, उसके संबंध में सोचिएगा क्या? जिसको देखा नहीं, जाना नहीं, जिससे परिचित नहीं, उसके संबंध में चिंतन क्या करिएगा? सब चिंतन गलत होगा।
भारत सोच-विचार को नहीं, देखने को, आंख खोल लेने को कहता है। भारत कहता है, सत्य देखा जाता है, विचारा नहीं ।
महावीर की पूरी धारणा दर्शन की है, चिंतन की नहीं । दर्शन हो सकता है । उसका दर्शन हो सकता है, जो भीतर बैठा है। उसकी, दर्शन उसकी शक्ति है, उसकी क्षमता है, उसका स्वरूप है। वह सारे जगत को कौन देख रहा है? मैं आपको देख रहा हूं, मैं सारे जगत को देख रहा हूं । देखना मेरी क्षमता है, सिर्फ जिस देखने की क्षमता से मैं सबको देख रहा हूं, उसका उपयोग मैं अपने पर करना नहीं जानता हूं! जो देखना सारे जगत पर प्रतिफलित हो रहा है, वह मैं अपने पर प्रतिफलित करना नहीं जानता हूं ! जो आंख सब पर खुली है, वह अपने पर खोलना नहीं जानता हूं— इतनी ही दिक्कत, इतनी ही परेशानी है।
रास्ता है! महावीर कहते हैं, जो दृश्य को देख रहा है, वह द्रष्टा को देख सकता है। और उस द्रष्टा को देखते ही जीवन का सारा दुख, सारी पीड़ा, सारा अज्ञान गिर जाएगा।
मैं देख रहा हूं, इतना तो तय है। स्वप्न ही सही, देख रहा हूं, इतना तो तय है। रात मैंने स्वप्न देखा, सुबह उठा, पाया, स्वप्न झूठा था । होगा स्वप्न झूठा, लेकिन मैंने देखा इतना तो सही है । होगा यह जगत माया होगा यह संसार व्यर्थ होगा यह असार, लेकिन मैंने देखा । देखना तो सत्य है। दृश्य हो सकता है असत्य, द्रष्टा असत्य नहीं हो सकता है। दृश्य हो सकता
65