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सवाल उनकी पूजा करने का नहीं, सवाल उन्हें मानने का नहीं, सवाल उस पूरे अंतस्तल को जानने का है जहां कि वह क्रांति पैदा होती है और व्यक्ति सामान्य से उठ कर असामान्य जीवन में प्रविष्ट हो जाता है। जहां वह असत्य से उसके सत्य के संसार से संबंधित हो जाता है। जहां वह चलायमान जो है उससे हट कर वह जो अचल है उस पर खड़ा हो जाता है। जहां वह अंधकार से हटता है और प्रकाश के बिंदु को उपलब्ध कर लेता है। यह प्रत्येक मनुष्य की निजी क्षमता है। और महावीर का संदेश दुनिया को यही है कि कोई मनुष्य किसी दूसरे की तरफ आंखें न उठाए, मुखापेक्षी न हो। किसी दूसरे से आप आशा न करें, किसी दूसरे से मांगें नहीं, किसी दसरे से भिक्षा का खयाल न करें। जो भी किया जा सकता है वह प्रत्येक व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से, अपने श्रम से, अपनी क्षमता से, अपने साहस से कर सकता है।
व्यक्ति की गरिमा को जैसी प्रतिष्ठा महावीर ने दी संभवतः संसार में किसी दूसरे व्यक्ति ने नहीं दी। और सारी पूजा और सारी शरण जाने की भावना छीन ली। और कहा अपनी शरण पर, अपने पैरों पर खड़े हो जाओ। अपनी हिम्मत और साहस का प्रयोग करो। जागो, निरीक्षण करो, और अपने भीतर प्रवेश पाओ, तो कोई भी वजह नहीं है कि जो कभी किसी को उपलब्ध हुआ हो वह हमें उपलब्ध क्यों न हो सके। यह उपलब्ध हो सकता है। और इसके लिए जरूरत नहीं कि कोई जंगल में भाग कर जाए, कोई पहाड़ पर जाए, कोई कपड़े बदले, कोई लंगोटी लगाए या नंगा हो जाए, या कोई भूखा मरे, या कोई उलटा सिर करके खड़ा हो जाए। इस सब की कोई भी जरूरत नहीं है। कोई उपद्रव, किसी तरह के उलटे-सीधे काम, किसी तरह का कोई पागलपन करने की कोई जरूरत नहीं है। जीवन को जानने, पहचानने, जागने, समझने और अपने भीतर प्रज्ञा को विकसित करने, साक्षी-भाव को जगाने की जरूरत है। यह कहीं भी हो सकता है। जो जहां है, वहीं हो सकता है। और यह हरेक व्यक्ति को कर ही लेना चाहिए। अन्यथा जीवन तो आएगा और व्यतीत हो जाएगा, और तब हमें ज्ञात होगा कि हमारे हाथ में कछ भी नहीं है। मौत सामने खडी होगी और हमको पता चलेगा. हम तो खाली हाथ हैं। फिर मौत से कितने ही भागें, कहीं कोई भाग कर नहीं जा सकता। कहीं भी भागें, फिर भागने का कोई उपाय नहीं है। जागने का उपाय है मौत से, लेकिन मौत से भागने का उपाय नहीं है।
उसके पहले कि मौत कहे कि ठीक जगह और ठीक समय पर आ गए, कुछ समय मिला हुआ है, उसका उपयोग हो सकता है। जो उसका उपयोग नहीं करता और नहीं जागता, वही अधर्म में है। जो उसका उपयोग कर लेता है और जाग जाता है, वह धर्म में प्रविष्ट हो जाता है।
धर्म में प्रविष्ट हों, ऐसी परमात्मा प्रेरणा दे। महावीर को प्रेम करते हैं, बुद्ध को प्रेम करते हैं, कृष्ण को, क्राइस्ट को प्रेम करते हैं, उनका प्रेम ऐसी प्रेरणा दे कि वह सत्य के प्रति जागें जिसकी कोई मृत्यु नहीं है, स्वयं को जानें जो अमृत है। और उससे भागने की नहीं, उसमें प्रवेश करने की बात है। यह हो सकता है। जैसे प्रत्येक बीज में अंकुर छिपा है, ऐसा प्रत्येक व्यक्ति में परमात्मा छिपा है। और अगर बीज बीज रह जाए तो जिम्मा हमारे सिवाय और किसी का भी नहीं होगा। वह वृक्ष बन सकता है। परमात्मा ऐसी क्षमता, ऐसी अभीप्सा, ऐसी प्यास प्रत्येक को दे कि वह बीज वृक्ष बन सके।
ओशो