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आमुख
चेतना का एक बिंदु है जो जीवन के सारे प्रवाह में अचल है। उसी बिंदु को पा लेना आत्मा को पा लेना है। तथ्यों को और चल-जगत को, वह परिवर्तनशील जगत को, वह जो चेंजिंग सारी दुनिया है, उसके प्रति जो जागता है वह क्रमशः उसे अनुभव करने लगता है जो कि अचल है, जो कि केंद्र है, जो कि बिंदु है, जो कि हम हैं, जो कि हमारी सत्ता है, जो कि हमारी आथेंटिक, हमारी प्रामाणिक आत्मा है।
उस बिंदु को जानना सम्यक ज्ञान है। सम्यक दर्शन है विधि, सम्यक ज्ञान है उसकी उपलब्धि। ये दो बातें बड़ी अर्थपूर्ण हैं। और दूसरे बिंदु को जो उपलब्ध हो जाता है उसका सारा आचरण बदल जाता है। उसे महावीर ने कहा, उसका आचरण सम्यक आचरण हो जाता है। दर्शन है विधि, ज्ञान है उपलब्धि, आचरण है उसका प्रकाश।
जब भीतर शांत और आनंदित, अचल और अमृत आत्मा का बोध होता है, तो सारा आचरण कुछ और हो जाता है। जैसे किसी घर के दीए बुझे हों, तो उसकी खिड़कियों से अंधकार दिखाई पड़ता है। और जैसे किसी घर के भीतर दीया जल जाए, तो उसकी खिड़कियों से रोशनी बाहर फिंकने लगती है। ऐसे ही जब किसी व्यक्ति के भीतर ज्ञान बुझा होता है और अज्ञान घना होता है, तो आचरण से दुराचरण का अंधकार फैलता रहता है। हिंसा है, और असत्य है, और काम है, और क्रोध है, वे उसकी खिड़कियों से जीवन के बाहर फैलते रहते हैं। और जब उसके भीतर ज्ञान का दीया जलता है और उसे ज्ञात होता है कि मैं कौन हूं और क्या हूं, तो उसके सारे भवन के द्वार, खिड़कियां आलोक को बाहर फेंकने लगते हैं। वही आलोक अहिंसा है, वही आलोक अपरिग्रह है, वही आलोक ब्रह्मचर्य है, वही आलोक सत्य है, फिर वह अनेक-अनेक किरणों में सारे जगत में व्याप्त होने लगता है।
__ महावीर ने तथ्यों को जाना, तथ्यों को पहचाना, वे सुख के भ्रम से मुक्त हुए, तथ्यों की व्याख्या छोड़ दी। व्याख्या छोड़ते ही वह दिखाई पड़ना शुरू हुआ जो कि ज्ञाता है, जो कि साक्षी है, जो कि विटनेस है। उसको जानने से उन्होंने स्वयं को पहचाना और जाना और जीवन में उस क्रांति को अनुभव किया जो सारे जीवन को प्रेम और प्रकाश से भर देती है। ऐसा जीवन अपने भीतर जाकर उन्होंने उपलब्ध किया। और जो व्यक्ति भी कभी ऐसे जीवन को पाना चाहे, वह अपने भीतर जाकर उपलब्ध कर सकता है। महावीर होने की क्षमता हर एक के भीतर मौजूद है।