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________________ माननी छोड़ दी हैं, वही साधु है। सिकंदर को कहना, हम सिवाय अपनी आज्ञा के और किसी की आज्ञा से नहीं चलते। उसके सेनापतियों ने कहा, यह आप भूल कर रहे हैं। सिकंदर ने यह भी संदेश कहलवाया है कि यह भी कह देना कि अगर इनकार हुआ तो हम तलवार के बल भी ले जा सकते हैं। उस साधु ने कहा, अपने सिकंदर को कहना कि जिसे तुम तलवार के बल ले जा सकते हो, उसे बहुत समय हुआ हम छोड़ चुके हैं। जिसे तुम तलवार के बल ले जा सकते हो, बहुत समय हुआ हम उसे छोड़ चुके हैं। सिकंदर खुद गया, और वह नंगी तलवार लेकर गया। वह जब नंगी तलवार लेकर गया तो साधु ने कहा, तलवार म्यान के भीतर कर लो। क्योंकि सामने जो है, उसके लिए तलवार बेकार है, और तुम बहुत बच्चे मालूम पड़ रहे हो नंगी तलवार हाथ में लिए हुए! और तुम पर बहुत हंसी आएगी हमको, इसलिए तलवार म्यान के भीतर कर लो। सिकंदर ने कहा, आपको चलना है। अन्यथा हम आपको समाप्त कर देंगे। उस साधु ने कहा, जिसे तुम समाप्त करोगे, उसे हम भी समाप्त होते हुए देखेंगे। उस साधु ने कहा, जिसे तुम समाप्त करोगे, उसे हम भी समाप्त होते हुए देखेंगे। हम भी साक्षी होंगे। समाप्त तुम करो। उसने कहा, जब तुम मुझे काटोगे तो जिस भांति तुम मुझे देखोगे कटता हुआ, उसी भांति मैं भी कटते हुए देगा। क्योंकि जिसको तुम काटोगे, वह मैं नहीं हूं। मैं अलग हूं, मैं पीछे हूं। जिस पर चोट पड़ती है, हमारा होना उसके पीछे है। जिसको पीड़ा और दुख आता है, हमारा होना उसके पीछे है। जिस शरीर के पीछे हम सारे दुख और पीड़ाओं को दूर करने में लगे रहते हैं, वह शरीर हम नहीं हैं। एक-एक दुख को जो दूर करेगा, वह शरीर से बंधा रहेगा। जो सारे दुखों के मूल में झांकेगा, वह पाएगा, हम शरीर से अलग हैं। _महावीर कहते हैं, समस्त दुख का मूल क्या है? दुख का मूल है तादात्म्य, यह आइडेंटिटी कि मैं शरीर हूं। सारे दुख का मूल यह है कि मैं शरीर हूं। और सारे आनंद का मूल यह बनेगा कि मैं जान लूं कि मैं शरीर नहीं हूं। जब तक मैं जानता हूं कि मैं शरीर हूं, तब तक मैं संसार में हूं। और जिस क्षण मैं जान लूंगा कि मैं शरीर नहीं हूं, मेरा मोक्ष में प्रवेश हो जाएगा। मोक्ष का अर्थ है यह बोध कि मैं शरीर नहीं हूं। और संसार का अर्थ है यह बोध कि मैं शरीर हूं। तो अगर आपको यह लगता हो कि मैं शरीर हूं, तो चाहे आप साधु हों और चाहे आप गृहस्थ हों, आप संसार में हैं। और अगर आपको लगता हो कि मैं शरीर नहीं हूं, तो चाहे आप साधु हों, चाहे आप गृहस्थ हों, आप संसार में नहीं हैं। मैं एक साध्वी से मिलता था। हवा जोर से चलती थी और मेरा कपड़ा उनको छूता था। वह बहुत घबड़ा गईं। कोई मित्र मेरे पास थे, उन्होंने मुझे रोका और कहा कि पुरुष का कपड़ा उनको छू रहा है। मैंने कहा, हैरानी हो गई। कपड़ा भी पुरुष हो सकता है! और अगर कपड़ा पुरुष हो सकता है, तो पुरुष छू लेगा तो क्या हालत होगी? ___ जिनको कपड़ा पुरुष हो सकता है, वे जानते होंगे कि वे शरीर हैं। उनकी तो हद शारीरिक दृष्टि है। ये सब भौतिकवादी लोग हैं, ये सब मैटीरियलिस्ट हैं। ये अध्यात्मवादी नहीं 24
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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