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महावीर यह कहते हैं कि अगर मनुष्य के मूल दुख को हम समझें और दूर करना चाहें तो एक-एक दुख को दूर करने की जरूरत नहीं है, यह बात जानने की जरूरत है कि दुख क्या है और किसे है। जब मेरे पैर में दर्द हो रहा हो या मेरे सिर में दर्द हो रहा हो, तब मुझे यह जानने की जरूरत है कि दुख और पीड़ा क्या है और दुख और पीड़ा किसे हो रही है। अगर मुझे यह दिखाई पड़ सके-जो दुख को, पीड़ा को, संताप को...।
मनुष्य के जीवन में दुख हैं, बहुत दुख हैं। एक दुख को हम दूर करते हैं, दूसरा दुख घेर लेता है; दूसरे को दूर करते हैं, तीसरा घेर लेता है। जो दुख को दूर करने में इस भांति लगा है, वह गृहस्थ है-जो एक-एक दुख को दूर करने में लगा है। जो समस्त दुखों के मूल कारण को दूर करने में लगा है, वह संन्यासी है। जो फुटकर बीमारियों को दूर करने में लगा है, वह गृहस्थ है। जो बीमारी मात्र को दूर करने में लगा है, वह संन्यासी है।
महावीर की जो अंतर्दृष्टि है मनुष्य की रुग्णता में और दुख में और पीड़ा में, वह यह है कि हमें यह जानना जरूरी है कि जब हमें दुख होता है, तो हमें दुख होता है या हमें दुख होने का भ्रम होता है? क्या मुझे दुख होता है या मेरे आस-पास दुख होता है और मैं समझ लेता हूं कि मुझे दुख हो रहा है?
सिकंदर जब भारत से वापस लौटता था, तो उसने चाहा एक साधु को वह अपने साथ यूनान ले जाए। जब वह यूनान से आता था, उसके मित्रों ने कहा था, भारत से कुछ चीजें लाना, एक साधु भी ले आना। साधुओं की चर्चा रही है भारत के बाहर–भारत के साधुओं की। और सिकंदर भारत को जीत कर लौटेगा तो उसके मित्रों ने कहा था, और सब चीजें लाओ, एक साधु भी लाना। साध देखना चाहेंगे।
सिकंदर जब लौटने लगा तो उसने भारत की सीमा के पास उसे खयाल आया- उसने कहा, हम किसी साधु को ले जाना चाहते हैं। उसने किसी विचारशील व्यक्ति से सलाह ली। उस विचारशील व्यक्ति ने कहा, जो चला जाए वह साधु नहीं होगा; और जो साधु है उसका जाना मुश्किल है। सिकंदर ने कहा, क्या बात करते हैं। जिसके सामने पहाड़ हट जाएं और जो पहाड़ों को भी बांध कर यूनान ले जाना चाहे, तो ले जाए। जो चाहे तो पूरे मुल्क को यूनान पहुंचा दे। एक साधु नहीं जा सकेगा! तो सिकंदर की तलवार किस काम आएगी? उस विचारशील आदमी ने कहा, जिसके सामने तलवार बेकार हो, वही तो साधु है। जो तलवार के भय से चला जाए, समझना कि उसे बेकार ले आए हो, वह सामान्य आदमी है, वह साधु नहीं है। फिर भी कोशिश कर लें।
सिकंदर बहुत हैरान हुआ और बहुत उत्सुक हो गया। उसने डेरा रोक दिया और उसने कहा, एक साधु को खोज कर ही जाएंगे। यह सच में ही अजीब चीज है, अगर साधु ऐसा आदमी है। एक साधु की खबर लगी, वह वहीं नदी के किनारे, पहाड़ की तलहटी में, एक घाटी के पास रहता था। सिकंदर ने अपने सेनापति वहां भेजे। उन सेनापतियों ने जाकर कहा कि महान सिकंदर की आज्ञा है कि आप हमारे साथ चलें! बहुत सम्मान हम आपको देंगे, बहुत इज्जत देंगे, यूनान आपको ले चलना चाहते हैं। उस साधु ने कहा, अपने सिकंदर को कहना कि जिसने सिवाय अपने और सबकी आज्ञाएं माननी छोड़ दी हैं, जिसने सिवाय अपने और सबकी आज्ञाएं