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________________ नहीं हूं जो रोज आया करता था। अब मैं एक सूखा पत्ता हूं। गुरु ने कहा कि अब तुझे मेरे पास आने की जरूरत भी नहीं है । अब बात खत्म हो गई है। पीपल ही तेरा गुरु है, उसी को नमस्कार कर और विदा हो जा। अब पीपल को पता भी नहीं होगा। कैसे पता होगा? मैं समझाऊं तो उससे आप नहीं समझ जाएंगे। आप खुद समझेंगे तो ही समझेंगे । और वह समझ सदा आपकी अपनी होगी, वह मेरी नहीं हो सकती। हां, मैं एक मौका, एक अवसर पैदा कर सकता हूं समझाने की कोशिश का। हो सकता है कोई उस वक्त जागा हुआ हो, उसे सुनाई पड़ जाए कि राजा बाबू, उठो! कब तक सोए रहोगे? लेकिन यह शास्त्र नहीं बनता । महावीर की वाणी शास्त्र नहीं बनती अगर हम महावीर को सर्वज्ञ और तीर्थंकर न बनाते । बुद्ध की वाणी शास्त्र न बनती अगर हम बुद्ध को भगवान न बनाते । कृष्ण की वाणी शास्त्र न बनती अगर हम उन्हें भगवान न बनाते। लेकिन हम बिना भगवान बनाए रुक नहीं सकते, क्योंकि बिना भगवान बनाए हमें समझना पड़ेगा। भगवान बनाने से झंझट उनकी तरफ हो जाती है, हमें समझने की कोई जरूरत नहीं रह जाती है। हम शास्त्र को पकड़ लेते हैं, और पक्का कर लेना चाहते हैं कि महावीर आप्त हैं, उपलब्ध हैं, उनको ज्ञान मिल गया है, वे सर्वज्ञ हैं। अगर संदिग्ध हों तो हम फिर किसी और को खोजें। जीसस भगवान के बेटे हैं, मोहम्मद पैगंबर हैं, इस तरह हम पक्का विश्वास जुटा लेना चाहते हैं ताकि झंझट मिट जाए। फिर हम पकड़ लें। वह हमारा विवेक न जगाना पड़े। विवेक से बचने के लिए हम शास्त्र को पकड़ते हैं । विवेक को जगाना हो तो पीपल के पत्ते भी जगा सकते हैं, जगत की कोई घटना भी जगा सकती है, किताब भी जगा सकती है, किसी आदमी का बोलना भी जगा सकता है, किसी आदमी का चुप होना भी जगा सकता है। समझना हो तो चुप भी समझ में आती है, न समझना हो तो बोला हुआ सत्य भी समझ में नहीं आता । मैं कोई पद्धति की बात नहीं कर रहा हूं। विवेक कोई पद्धति नहीं हो सकती । विवेक का स्मरण आ सकता है। फिर आपको कूदना पड़ेगा, तैरना पड़ेगा, तड़फड़ाना पड़ेगा। धीरे-धीरे आ जाएगा विवेक । जिस दिन आ जाएगा उस दिन आपको लगेगा कि किसी का दिया हुआ नहीं आया, किसी गुरु का दिया हुआ नहीं, किसी शास्त्र का दिया हुआ नहीं। उस दिन आपको लगेगा कि मेरे ही भीतर सोया था जग गया है, मेरे भीतर सोया था जग गया है, जो उपलब्ध था वही पा लिया है, जिसे कभी नहीं खोया था वही मिल गया है। प्रश्न ः ओशो, पहला प्रश्न यह है कि समाज का अहिंसा से क्या संबंध है? दूसरा प्रश्न यह है कि महावीर ने अहिंसा या सत्य की दो-ढाई हजार वर्ष पहले बात कही, उसका आज क्या मतलब हो सकता है ? तीसरा प्रश्न यह है कि जो आप कहते हैं कि नैतिक अहिंसा अलग है और धार्मिक अहिंसा अलग है, अगर आप दोनों में से अहिंसा को हटा दें तो इसका मतलब यह है कि जब आप धर्म की बात पर आ जाते हैं तो नीति नष्ट हो जाती है ! 188
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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