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इसलिए सत्य कभी किसी को दिया नहीं जा सकता। मैं आपको कोई सत्य नहीं दे सकता। लेकिन मैं जो कह रहा हूं, मैं जो बात कर रहा हूं, उस बात करने के वक्त आप इतने जागे हुए हो सकते हैं, विवेक से भरे हुए हो सकते हैं कि कोई सत्य आपको दिखाई पड़ जाए। कई बार ऐसा भी होता है कि अज्ञानियों से भी सत्य मिल जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि ज्ञानी भी सत्य नहीं दे पाता।
मैंने सुना है कि बंगाल में एक फकीर हुआ, राजा बाबू उनका नाम था। वह हाई कोर्ट के मजिस्ट्रेट थे, जस्टिस थे। रिटायर्ड हुए थे, साठ साल के थे। सुबह के वक्त घूमने निकले हैं एक लकड़ी लेकर, रोज की आदत के अनुसार। एक मकान के सामने से निकले है। दरवाजा बंद है। घर के भीतर कोई मां, कोई भाभी, किसी बेटे को, किसी देवर को उठा रही है। उसे पता भी नहीं कि कोई बाहर राजा बाबू नाम का बूढ़ा आदमी जा रहा है। उसने भीतर अपने बेटे को कहा, राजा बाबू, उठो! अब बहुत देर हो गई, सुबह हो गई, सूरज निकल आया, कब तक सोए रहोगे?
और बाहर राजा बाबू चले जा रहे हैं, उन्हें एकदम सुनाई पड़ाः राजा बाबू, उठो! सुबह हो गई, सूरज निकल आया है, कब तक सोए रहोगे?
वह छड़ी उन्होंने वहीं फेंक दी, दरवाजे पर नमस्कार किया-उस स्त्री के लिए जिसको कि पता भी नहीं होगा, क्योंकि वह तो घर के भीतर थी-घर वापस लौट आए। आकर कहा कि अब मैं जा रहा हूं। तो घर के लोगों ने कहा कि कहां जाते हो? तो उन्होंने कहा, राजा बाबू, उठो! सुबह हो गई, सूरज निकल आया, कब तक सोए रहोगे? उन लोगों ने कहा, पागल हो गए हैं! क्या बातें कर रहे हैं? तो उन्होंने कहा कि आज कुछ सुनाई पड़ गया, कुछ मिल गया। अब मैं जाता हूं। ___मैंने यह भी सुना है कि एक फकीर अपने गुरु के निवास पर बीस वर्षों तक रहा। उसे कुछ भी न मिला। सब समझाना व्यर्थ हो गया। फिर गुरु ने कहा कि अब तू समझना भी छोड़, क्योंकि समझने से बीस साल में नहीं मिला तो अब तू समझना छोड़ दे। अब तेरा मन हो तो तू बैठ जा, न मन हो तो उठ जा। समझना हो तो समझ, न समझना हो तो न समझ, सोना हो तो सो जा। जो तुझे करना हो कर। अब तू समझना छोड़ दे। क्योंकि समझना भी एक दिक्कत दे रहा है, क्योंकि समझना भी तो एक तनाव ले आता है।
किसी का नाम भूल गया हो, खोजते हैं, खो जाता है। फिर छोड़ देते हैं, फिर चाय पीने लगते हैं, गड्ढा खोदने लगते हैं बगीचे में और अचानक ही वह नाम याद आ जाता है। समझना भी तनाव पैदा कर देता है।
उसने कहा, ठीक है, अब मैं समझना भी छोड़ता हूं। उसी दिन वह दरवाजे के बाहर निकला, बाहर पीपल का वृक्ष है। सूखे पत्ते गिर रहे हैं। पतझड़ है। वह खड़ा हो गया, पत्ते गिर रहे हैं सूखे। वह वापस लौट कर पहुंचा, गुरु के पैर पकड़ लिए और कहा कि मैं समझ गया।
गुरु ने कहा कि मैं तो थक गया समझा-समझा कर, तू अब तक नहीं समझा।
उसने कहा, आज मैं समझने का खयाल छोड़ कर बाहर द्वार पर जाकर खड़ा हुआ। पीपल के पत्ते गिर रहे हैं। पत्ते सूख गए हैं और गिर रहे हैं। मुझे वह सब दिख गया जो आपने बहुत बार समझाया। मुझे मृत्यु दिख गई और मैं मर गया उन पत्तों के साथ। अब मैं वह आदमी
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