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काल्पनिक है कहानी, सुबह ही सपने में नहीं, पूरी ही सपने में देखी गई होगी समझ ले सकते हैं। लेकिन हम सब भी इसी कहानी के पात्र हैं। और जिससे भाग रहे हैं उसी की तरफ पहुंचे जा रहे हैं। कितने ही भागें और घोड़े को कैसा भी दौड़ाएं, और प्राण छोड़ दें, और भागते चले जाएं। आखिर में पाएंगे कि सही जगह पहुंच गए हैं जहां बुलाए गए थे। और तब पीछे मौत को खड़ा हुआ पाएंगे। उसके पहले कि मौत कहे कि ठीक जगह और ठीक समय पर आ गए, कुछ समय मिला हुआ है, उसका उपयोग हो सकता है। जो उसका उपयोग नहीं करता और नहीं जागता, वही अधर्म में है। जो उसका उपयोग कर लेता है और जाग जाता है, वह धर्म में प्रविष्ट हो जाता है।
धर्म में प्रविष्ट हों, ऐसी परमात्मा प्रेरणा दे। महावीर को प्रेम करते हैं, बुद्ध को प्रेम करते हैं, कृष्ण को, क्राइस्ट को प्रेम करते हैं, उनका प्रेम ऐसी प्रेरणा दे कि वह सत्य के प्रति जागे जिसकी कोई मृत्यु नहीं है, स्वयं को जानें जो अमृत है। और उससे भागने की नहीं, उसमें प्रवेश करने की बात है। यह हो सकता है। जैसे प्रत्येक बीज में अंकुर छिपा है, ऐसा प्रत्येक व्यक्ति में परमात्मा छिपा है। और अगर बीज बीज रह जाए तो जिम्मा हमारे सिवाय और किसी का भी नहीं होगा। वह वृक्ष बन सकता है। परमात्मा ऐसी क्षमता, ऐसी अभीप्सा, ऐसी प्यास प्रत्येक को दे कि वह बीज वृक्ष बन सके।
महावीर-जयंती के इस पुण्य-पर्व पर ये थोड़ी सी बातें कह कर मैं अपनी बात पूरी करता हूं। मेरी बातों को बड़े प्रेम और बड़ी शांति से सुना है, उससे अनुगृहीत हूं। और सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें।
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