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________________ पागलपन करने की कोई जरूरत नहीं है। जीवन को जानने, पहचानने, जागने, समझने और अपने भीतर प्रज्ञा को विकसित करने, साक्षीभाव को जगाने की जरूरत है। यह कहीं भी हो सकता है। जो जहां है, वहीं हो सकता है। और यह हरेक व्यक्ति को कर ही लेना चाहिए। अन्यथा जीवन तो आएगा और व्यतीत हो जाएगा, और तब हमें ज्ञात होगा कि हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है। मौत सामने खड़ी होगी और हमको पता चलेगा, हम तो खाली हाथ हैं। फिर मौत से कितने ही भागें, कहीं कोई भाग कर नहीं जा सकता। कहीं भी भागें, फिर भागने का कोई उपाय नहीं है। जागने का उपाय है मौत से, लेकिन मौत से भागने का उपाय नहीं है। ___ सुबह मुझसे कोई पूछता था, मौत क्या है? तो मैंने कहा, जो जीवन को नहीं जानते उनको मौत दिखाई पड़ती है। जो जीवन को जानते हैं उनके लिए कोई मौत ही नहीं है। इसलिए मौत को जानने का तो उपाय है, जान लेंगे तो पाएंगे मौत नहीं है। लेकिन मौत से भागने का कोई उपाय नहीं है, क्योंकि भागने वाला तो मानता है कि मौत है। वह मौत उसका पीछा करेगी। एक छोटी सी कहानी, अपनी चर्चा को मैं पूरा करूं। दमिश्क में एक राजा हुआ। उसके बाबत एक बड़ी काल्पनिक कहानी प्रचलित है। एक सुबह उसने पांच बजे के करीब सपना देखा। सपना देखा कि पीछे मौत खड़ी हुई है। वह एक बगीचे में खड़ा हुआ है एक झाड़ के पास और पीछे उसके मौत खड़ी हुई है। उसने पूछा, तुम कौन हो? उसने कहा, मैं मौत! और तुम्हें लेने को आ गई। आज सांझ को ठीक जगह और ठीक स्थान पर मुझे मिल जाना। घबराहट में उसकी नींद खुल गई, किसी की भी खुल जाए। पांच बजे ही उसने अपने दरबार के जो विचारशील विद्वान थे, ज्योतिषी थे, पंडित थे, उनको बुलवा भेजा। और उसने कहा कि बड़ा अपशगुन हुआ है, बड़ा बुरा सपना देखा है। सपना देखा है कि मैं एक दरख्त के पास खड़ा हूं। मौत पीछे आ गई। मैंने पूछा, कौन हो? उसने परिचय दिया। और फिर उसने कहा कि आज सांझ कोई सूरज डूबने के बाद ठीक स्थान पर ठीक समय पर मिल जाना। पहुंच जाना। बस आज अंतिम विदा का दिन है। तब इसका क्या अर्थ है? मामला क्या है? ___ज्योतिषियों ने कहा, समय खोने का और मामले को तय करने का और ग्रंथों और शास्त्रों में खोजने की फुर्सत भी तो नहीं है अब। सांझ बहुत जल्दी हो जाएगी। तो उपाय यह है कि तुम भागो और जितनी दूर भाग सकते हो भाग जाओ। सांझ के पहले तुम जितने दूर निकल सकते हो निकल जाओ। अब इसमें विचार करने की फुर्सत नहीं है, नहीं तो सांझ तो विचार में ही हो जाएगी, हम निर्णय भी नहीं कर पाएंगे और मामला खत्म हो जाएगा। सूरज डूबने में देर ही कितनी है! सूरज उगना शुरू हो गया था। तो अब सूरज डूबने में देर ही कितनी है! उगा हुआ सूरज जल्दी-जल्दी डूब ही जाता है। भाग जाओ जितनी जल्दी भाग सकते हो! __ तेज से तेज घोड़ा और राजा भागा। प्राण बचाने की बात थी तो सारे प्राण छोड़ कर भागा। जितनी शक्ति थी घोड़े की, भगाया-भगाया सैकड़ों मील। सांझ सूरज डूबने लगा तो वह दूर निकल गया। उसने थोड़ी राहत की सांस ली, काफी फासला तय कर लिया था। और एक बगीचे में जाकर घोड़े को बांध रहा था एक दरख्त से और पाया कि सूरज डूब गया और मौत पीछे खड़ी है। उसने घबरा कर पूछा, क्यों? मौत ने कहा कि ठीक जगह और ठीक समय पर आ गए। यहीं तो बुलाया था। 170
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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